राजस्थान की सभ्यताएँ
राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएँ
ताम्रयुगीन सभ्यता
लौहयुगीन सभ्यता
राजस्थान की ताम्रयुगीन सभ्यताएँ:-
कालीबंगा:-
कालीबंगा स्थल हनुमानगढ़ जिले में हैं। इसका शाब्दिक अर्थ हैं काली चूड़ियाँ (सिन्धु लिपि का शब्द) है।
यह एक नगरीय सभ्यता थी जो तत्कालीन सरस्वती और दृष्द्धती नदियों के किनारे पनपी वर्तमान में घग्घर नदी के तट पर स्थित हैं।
कालीबंगा की खोज अमलानन्द घोष ने सन् 1952 में की। इसके उत्खनन का कार्य बी.बी.लाल एव बी. के.थापर ने किया।
कालीबंगा एक किलेबन्द बस्ती थी। इसका परकोटा कच्ची ईंटों का था।
कालीबंगा से प्राकहड़प्पा व हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवषेष मिलें हैं।
प्राक हड़प्पा कच्ची बस्ती थी जो चारों ओर परकोटों से सुरक्षित थी। प्राकहड़प्पा से जूते हुए खेतों के प्रमाण, गेहूँ और जौं के साक्ष्य मिलें हैं।
हड़प्पाकालीन संस्कृति:-
पष्चिम का टीला:- उच्च टीला, निम्न गढ़, दुर्गराजा, प्रषासनिक वर्ग, धर्मगुरू
पूर्व का टीला:- पूर्व का टीला, नगरीयगढ़, निम्न टिला
पूर्व के टिलें से सात अग्निवेदिया मिली हैं, जो धर्म अनुष्ठान के प्रतीक हैं।
कालीबंगा से तांबा हड़प्पावासीयों को भेजा जाता था। कालीबंगा के उत्खनन से मिली सामग्री में मिट्टी के बर्तन, बेल की खण्डित मूर्ति, शंख, मणके, चुड़िया आदि प्रमुख हैं।
आहड़ सभ्यता:-
आहड़ जयपुर से 2/3 मील दूरी पर स्थित एक कस्बा हैं, जो बनास व बेड़च के संगम पर स्थित हैं।
आहड़ सभ्यता को ‘ताम्रवती नगरी’, ‘बनास संस्कृति’ तथा स्थानीय भाषा में ‘धूलकोट’ कहते हैं।
इसी खोज सन् 1854 में आर.सी.अग्रवाल (रतनचन्द) ने की थी एवं इसका उत्खनन एच.डी.सांकलिवया ने किया था।
आहड़ सभ्यता का फैलाव उदयपुर, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा व डूंगरपुर में था।
यहां ताम्र उद्योग विकसित अवस्था में था। यहां से ताम्रछल्ले, चुड़िया, सुरमा डालने की सलाइयां मिले हैं।
आहड़ सभ्यता एक ग्रामीण सभ्यता थीं। यहां पर गेहूँ, जौ, चावल आदि उगाया जाता था।
गणेषवर सभ्यता:-
यह ‘नीम का थाना’ सीकर में कान्तली नदी के किनारे पनपी थी ।
इसकी खोज आर.सी.अग्रवाल (रतनचन्द) ने की थी।
गणेष्वर सभ्यता को ‘‘ताम्रयुगीन सभ्यताओं की जननी’’ कहते हैं।
यहां पर तीर, भालें, कुल्हाड़िया आदि मिलें हैं।
राजस्थान की लौहयुगीन सभ्यता:-
बैराठ (जयपुर):-
यह एक लौहयुगीन सभ्यता हैं। इसका प्राचीन नाम विराटनगर हैं। यह प्राचीन मत्स्य जनपद की राजधानी थी।
यहां से मध्यपाषाणकालीन उपकरण मिलें हैं।
बैराठ से स्वास्तिक व अषोक का भाब्रु षिलालेख मिलें हैं।
कैप्टन बर्ट ने यहां बिजक की पहाड़ियों को खोजा, जिसे उन्होने बिजक डूंगरी नाम दिया।
बैराठ से मौर्यकालीन सभ्यता के अवषेष भी मिले हैं।
अषोक का भाब्रु षिलालेख ब्राह्यमी लिपी में लिया गया हैं। अषोक के मुल 13 षिलालेख हैं।
नोह (भरतपुर):-
यहां से कुषाणकालीन व मौर्यकालीन सभ्यता के अवषेष मिलें हैं।
रेढ़ (टोंक):-
इसे प्राचीन राजस्थान का टाटानगर कहते हैं।
यहां से लौह-अयस्क के अवषेष प्राप्त हुए हैं। पूर्व गुप्तकालीन सभ्यता के अवषेष मिलें हैं।
सुनारी (झुंझुनूं):-
यह एक लौहयुगीन सभ्यता हैं। यहां से लोहे की भट्टीया मिली हैं।
रंगमहल:-
यह हनुमानगढ़ में घग्घर नदी के तट पर स्थित हैं।
इसकी खोज स्वीडष दल ने की यहां से कुषाणकालीन और गुप्तकालीन सभ्यता के अवषेष मिलें हैं।
यह एक ताम्रयुगीन सभ्यता हैं।
बालाथल:-
यह उदयपुर के वल्लभनगर तहसील में स्थित ताम्रयुगीन सभ्यता हैं।
इसकी खोज वी.एन.मिश्रा ने की थी।
इस सभ्यता के लोग बर्तन बनाने की कला में निपुण थें।
बागौर:-
यह भीलवाड़ा में स्थित हैं।
यहां पर उत्तरपाषाणकालीन संस्कृति के अवषेष मिलें हैं।
बागौर कोठारी नदी के तट पर स्थित हैं।
यहां के लोग आखेट पर निर्भर रहते थे।
सौथीं:-
यह बीकानेर में स्थित हैं।
इसकी खोज अमलानन्द घोष ने की थी।
यह कालीबंगा प्रथम के नाम से जानी जाती हैं।
नगर:-
यह टोंक में स्थित हैं। यहां से मालव सिक्के मिले हैं।
नगरी:-
यह चित्तौड़गढ़ में स्थित हैं।
इसका प्राचीन नाम माध्यमिका था।
यहां से षिवि जनपद के अवषेष मिले हैं।
राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएँ
ताम्रयुगीन सभ्यता
लौहयुगीन सभ्यता
राजस्थान की ताम्रयुगीन सभ्यताएँ:-
कालीबंगा:-
कालीबंगा स्थल हनुमानगढ़ जिले में हैं। इसका शाब्दिक अर्थ हैं काली चूड़ियाँ (सिन्धु लिपि का शब्द) है।
यह एक नगरीय सभ्यता थी जो तत्कालीन सरस्वती और दृष्द्धती नदियों के किनारे पनपी वर्तमान में घग्घर नदी के तट पर स्थित हैं।
कालीबंगा की खोज अमलानन्द घोष ने सन् 1952 में की। इसके उत्खनन का कार्य बी.बी.लाल एव बी. के.थापर ने किया।
कालीबंगा एक किलेबन्द बस्ती थी। इसका परकोटा कच्ची ईंटों का था।
कालीबंगा से प्राकहड़प्पा व हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवषेष मिलें हैं।
प्राक हड़प्पा कच्ची बस्ती थी जो चारों ओर परकोटों से सुरक्षित थी। प्राकहड़प्पा से जूते हुए खेतों के प्रमाण, गेहूँ और जौं के साक्ष्य मिलें हैं।
हड़प्पाकालीन संस्कृति:-
पष्चिम का टीला:- उच्च टीला, निम्न गढ़, दुर्गराजा, प्रषासनिक वर्ग, धर्मगुरू
पूर्व का टीला:- पूर्व का टीला, नगरीयगढ़, निम्न टिला
पूर्व के टिलें से सात अग्निवेदिया मिली हैं, जो धर्म अनुष्ठान के प्रतीक हैं।
कालीबंगा से तांबा हड़प्पावासीयों को भेजा जाता था। कालीबंगा के उत्खनन से मिली सामग्री में मिट्टी के बर्तन, बेल की खण्डित मूर्ति, शंख, मणके, चुड़िया आदि प्रमुख हैं।
आहड़ सभ्यता:-
आहड़ जयपुर से 2/3 मील दूरी पर स्थित एक कस्बा हैं, जो बनास व बेड़च के संगम पर स्थित हैं।
आहड़ सभ्यता को ‘ताम्रवती नगरी’, ‘बनास संस्कृति’ तथा स्थानीय भाषा में ‘धूलकोट’ कहते हैं।
इसी खोज सन् 1854 में आर.सी.अग्रवाल (रतनचन्द) ने की थी एवं इसका उत्खनन एच.डी.सांकलिवया ने किया था।
आहड़ सभ्यता का फैलाव उदयपुर, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा व डूंगरपुर में था।
यहां ताम्र उद्योग विकसित अवस्था में था। यहां से ताम्रछल्ले, चुड़िया, सुरमा डालने की सलाइयां मिले हैं।
आहड़ सभ्यता एक ग्रामीण सभ्यता थीं। यहां पर गेहूँ, जौ, चावल आदि उगाया जाता था।
गणेषवर सभ्यता:-
यह ‘नीम का थाना’ सीकर में कान्तली नदी के किनारे पनपी थी ।
इसकी खोज आर.सी.अग्रवाल (रतनचन्द) ने की थी।
गणेष्वर सभ्यता को ‘‘ताम्रयुगीन सभ्यताओं की जननी’’ कहते हैं।
यहां पर तीर, भालें, कुल्हाड़िया आदि मिलें हैं।
राजस्थान की लौहयुगीन सभ्यता:-
बैराठ (जयपुर):-
यह एक लौहयुगीन सभ्यता हैं। इसका प्राचीन नाम विराटनगर हैं। यह प्राचीन मत्स्य जनपद की राजधानी थी।
यहां से मध्यपाषाणकालीन उपकरण मिलें हैं।
बैराठ से स्वास्तिक व अषोक का भाब्रु षिलालेख मिलें हैं।
कैप्टन बर्ट ने यहां बिजक की पहाड़ियों को खोजा, जिसे उन्होने बिजक डूंगरी नाम दिया।
बैराठ से मौर्यकालीन सभ्यता के अवषेष भी मिले हैं।
अषोक का भाब्रु षिलालेख ब्राह्यमी लिपी में लिया गया हैं। अषोक के मुल 13 षिलालेख हैं।
नोह (भरतपुर):-
यहां से कुषाणकालीन व मौर्यकालीन सभ्यता के अवषेष मिलें हैं।
रेढ़ (टोंक):-
इसे प्राचीन राजस्थान का टाटानगर कहते हैं।
यहां से लौह-अयस्क के अवषेष प्राप्त हुए हैं। पूर्व गुप्तकालीन सभ्यता के अवषेष मिलें हैं।
सुनारी (झुंझुनूं):-
यह एक लौहयुगीन सभ्यता हैं। यहां से लोहे की भट्टीया मिली हैं।
रंगमहल:-
यह हनुमानगढ़ में घग्घर नदी के तट पर स्थित हैं।
इसकी खोज स्वीडष दल ने की यहां से कुषाणकालीन और गुप्तकालीन सभ्यता के अवषेष मिलें हैं।
यह एक ताम्रयुगीन सभ्यता हैं।
बालाथल:-
यह उदयपुर के वल्लभनगर तहसील में स्थित ताम्रयुगीन सभ्यता हैं।
इसकी खोज वी.एन.मिश्रा ने की थी।
इस सभ्यता के लोग बर्तन बनाने की कला में निपुण थें।
बागौर:-
यह भीलवाड़ा में स्थित हैं।
यहां पर उत्तरपाषाणकालीन संस्कृति के अवषेष मिलें हैं।
बागौर कोठारी नदी के तट पर स्थित हैं।
यहां के लोग आखेट पर निर्भर रहते थे।
सौथीं:-
यह बीकानेर में स्थित हैं।
इसकी खोज अमलानन्द घोष ने की थी।
यह कालीबंगा प्रथम के नाम से जानी जाती हैं।
नगर:-
यह टोंक में स्थित हैं। यहां से मालव सिक्के मिले हैं।
नगरी:-
यह चित्तौड़गढ़ में स्थित हैं।
इसका प्राचीन नाम माध्यमिका था।
यहां से षिवि जनपद के अवषेष मिले हैं।
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