राजस्थान का विद्युत परियोजनाएँ
विद्युत परियोजनाएँ
सौर ऊर्जा:-
राजस्थान का पष्चिमी क्षेत्र जैसलमेर, जोधपुर, बाड़मेर, सौलर एनर्जी के लिए सर्वांधिक उपयुक्त जिले हैं।
इसी उद्देष्य से राजस्थान सरकार ने इन तीनों जिलो को सीज क्षेत्र घोषित किया हैं।
सौलर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए विष्व बैंक व जर्मनी की सहायता से प्रोजेक्ट लगाए जा रहे हैं।
जोधपुर के मथानिया में 140 मेगावाट का सौर ऊर्जा केन्द्र स्थापित करने की योजना प्रस्तावित हैं।
जोधपुर के बालेसर में पहला सौर फ्रिज स्थापित किया गया था।
अंतरिक्ष में छोड़े गए उपग्रहों को सौलर बैटरी से ऊर्जा मिलती है। (राष्ट्रपति भवन को भी ऊर्जा)
उदयपुर के फतेहसागर झील में नावें और सौर वैध शाला सौलर ऊर्जा से संचालित हैं।
उदयपुर के डबोक हवाई अड्डे का अधिकांष भाग सौलर ऊर्जा से संचालित हैं।
दक्षिणी-पष्चिमी राजस्थान सौर ऊर्जा के लिए सबसे उपयुक्त क्षेत्र हैं।
पवन ऊर्जा:-
राजस्थान का पष्चिमी क्षेत्र पवन ऊर्जा के लिए सर्वांधिक उपयुक्त हैं। जहां
वर्षं के अधिकांष महीनों में 20 से 40 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से हवा चलती हैं।
इंदिरा गांधी नहर क्षेत्र में (सीमावर्ती जिलें में) पवन ऊर्जा के लिए सर्वांधिक उपयुक्त हैं।
सामान्यतः पवन ऊर्जा के लिए वायु की गति 10-12 किलोमीटर प्रति घंटा होना आवष्यक हैं।
राजस्थान में जैसलमेर में अमरसागर, चित्तौड़गढ़ के देवगढ़ और जोधपुर के फलौदी में पवन ऊर्जा की तीन इकाईयाँ स्थापित की जा चुकी हैं।
2006 तक राजस्थान में 450 मेगावाट की इकाईयां प्रस्तावित हो चुकी हैं।
राज्य के अक्षय ऊर्जा निगम के द्वारा जैसमेर के सोढ़ा गांव में 25 मेगावाट की एक इकाई स्थापित की जा रही हैं।
बायोगैस (गोबरगैस):-
गोबरगैस का अविष्कार बी.सी.देसाई ने किया।
गांवों में दीनदयाल माॅडल सर्वांधिक प्रचलित हैं।
सन् 1981 में (छठी पंचवर्षीय योजना) यह कार्यक्रम (बायोगैस) शुरू किया गया।
इसमें गीला गोबर का उपयोग किया जाता हैं।
बायोमास:-
इसमें पेड़-पौधों की पत्तियां व घास-फूस काम मंे ली जाती हैं।
गंगानगर में सर्वांधिक प्रसिद्ध हैं।
लिग्नाईट आधारित विद्युत परियोजनाएँ:-
राजस्थान अच्छे किस्म के लिग्नाईट उत्पादन में प्रथम स्थान पर हैं।
लिग्नाइट के भण्डारण की दृष्टि में दूसरे स्थान पर हैं, पहला स्थान तमिलनाडु का एवं तीसरा स्थान गुजरात का हैं।
इसके उत्पादक जिलें निम्न हैं:- बाड़मेर , बीकानेर , नागौर
सबसे अच्छे किस्म का लिग्नाई पलाना में उत्पादित होता हैं।
कपुरड़ी (बाड़मेर):- लिग्नाइट उत्पादक क्षेत्र जहां 250 मेगावाट की इकाईयां स्थापित की जा रही हैं।
जालिप्पा (बाड़मेर):-यहां 250-250 मेगावाट की 4 इकाईयां निर्माणाधीन हैं।
गिरल (बाड़मेर):- 250 मेगावाट की एक इकाई स्थापित हैं।
सूरतगढ़ थर्मल पावर प्रोजेक्ट:-
थर्मल पावर प्राजेक्ट को NTPC द्वारा संचालित किया जाता हैं। (नेषनल थर्मल पावर कारपोरेषन)
सूरतगढ़ में कुल 6 इकाईयाँ स्थापित हैं।
सबसे कम 195 मेगावाट की हैं जिसका जनवरी 2007 में षिलान्यास हुआ था।
कुल स्थापित क्षमता 1440 मेगावाट हैं।
धौलपुर थर्मल पावर प्रोजेक्ट (गैस पर आधारित) (नेफ्था):- यह निर्माणाधीन हैं।
कोटा थर्मलपावर प्रोजेक्ट:-
यह सन् 1978 में स्थापित किया गया था।
यह राजस्थान का पहला सबसे बड़ा थर्मल पाॅवर प्रोजेक्ट था।
इसके अन्तर्गत कुल चार चरणों का निर्माण हुआ। जिसमें 6 इकईयां स्थापित की जा चुकी हैं।
इनकी कुल स्थापित क्षमता 1240 मेगावाट हैं।
छठी इकाई 195 मेगावाट की हैं।
सातवीं इकाई का षिलान्यास सन् 2006 में किया गया जिसमें उत्पादन 2008 के अंत मंे शुरू होगा।
राजस्थान से बाहर स्थित विद्युत परियोजनाएं, जिसमें राजस्थान की भागीदारी हैं:-
धौलीगंगा जल-विद्युत परियोजना:-
उत्तरांचल में धौलीगंगा नदी पर स्थित हैं।
जिससे राजस्थान को 75 मेगावाट बिजली मिलती हैं।
सिंगरौली सुपर थर्मल पावर प्रोजेक्ट:-
उत्तर-प्रदेष में स्थित।
इसकी स्थापित क्षमता 2050 मेगावाट हैं।
राजस्थान को 15 % अर्थात् 307.5 मेगावाट मिलती हैं।
नरौरा परमाणु ऊर्जा केन्द्र:-
यह उत्तरप्रदेष में स्थित हैं।
इससे राजस्थान को 9.6% बिजली मिलती हैं।
सतपुड़ा ताप विद्युत परियोजना:-
राजस्थान, मध्यप्रदेष व गुजरात की संयुक्त परियोजना हैं।
इसमंे राजस्थान को 1/3 भाग मिलेगा।
वर्तमान में 100 मेगावाट मिल रही हैं, कुल 100 मेगावाट का उत्पादन होता हैं।
रिहन्द सुपर थर्मल पावर प्रोजेक्ट:-
यह उत्तरप्रदेष में स्थित हैं।
राजस्थान को कुल उत्पादन का 9.5% प्राप्त होता हैं।
इसकी स्थापित क्षमता 1000 मेगावाट हैं।
औरभा ताप विद्युत परियोजना:-
यह उत्तरप्रदेष में स्थित हैं।
इससे राजस्थान को कुल 9.2 % बिजली प्राप्त होती हैं।
इसकी कुल क्षमता 952 मेगावाट हैं।
अंता ताप विद्युत परियोजना:-
यह बांरा में स्थित गैस आधारित परियोजना हैं।
इससे राजस्थान को कुल 19.8 % बिजली मिलेगी।
यह केन्द्र सरकार व राज्य सरकार की सम्मिलित परियोजना हैं।
इसकी कुल क्षमता 413 मेगावाट हैं।
भाखड़ा-नागंल परियोजना:-
इसके अंतर्गत 2 इकाईयां स्थापित हैं। पहली सुरगंगुवाल में व दूसरी कोटला में हैं।
इन दोनो इकाईयों से राजस्थान को 15.2 % बिजली मिलती हैं।
पोंग जल विद्युत परियोजना से 58 % बिजली राजस्थान को मिलती हैं।
देहर (हिमाचल प्रदेष) विद्युत परियोजना से 20% राजस्थान को मिलती हैं।
चम्बल नदी घाटी परियोजना से 50 % बिजली मिलती हैं। जो राजस्थान व मध्यप्रदेष के मध्य विभाजित होती हैं।
माही जल विद्युत परियोजना से 140 मेगावाट बिजली मिलती हैं। (जमनालाल बजाज सागर बांध)
इंदिरा गांधी नहर पर पूगल, सूरतगढ़, चारणवाली, अनुपगढ़ व बीसलपुर शाखाओं पर छोटी-छोटी जल विद्युत परियोजना स्थापित की गई हैं। (22 मेगावाट)
राहु घाट जल-विद्युत परियोजना हैं:-
यह करौली में चम्बल नदी पर निर्माणाधीन हैं।
यह 79 मेगावाट की विद्युत परियोजना हैं।
अनास जल-विद्युत परियोजना:- यह उदयपुर में स्थापित 45 मेगावाट की परियोजना हैं।
राजस्थान में सर्वांधिक विद्युत का उत्पादन थर्मल पाॅवर से होता है।
दूसरा स्थान जल-विद्युत का हैं।
तीसरा स्थान परमाणु ऊर्जा का हैं।
राजस्थान विद्युत मण्डल को 1999 में 3 भागों में बांटा गया हैं।
1. उत्पादन (जयपुर) 2. प्रसारण (जयपुर) 3. वितरण (जयपुर, जोधपुर, अजमेर)
2006 के दिसम्बर तक राजस्थान के 98% गांव विद्युतीकृत थें।
सूरतगढ़ में ताप विद्युत की पहली इकाई में उत्पादन कार्य सन् 1998 में शुरू हुआ था।
कोटा में उत्पादन कार्य सन् 1982 में शुरू हुआ था।
पहला स्थान:- सूरतगढ़ का, दूसरा स्थान:- कोटा का, तीसरा स्थान:- छबड़ा (बांरा) का हैं।
मार्च, 2007 तक राजस्थान की कुल स्थापित विद्युत क्षमता 5647 मेगावाट थी।
Rajasthan Energy Development Agency (REDA) (रेड़ा) :-
इसकी स्थापना सन् 1985 में की गई थी।
इसका उद्देष्य गैर-परम्परागत ऊर्जा स्त्रोतों का विकास करना था।
सौर-ऊर्जा, बायोगैस, पवन-ऊर्जा, बायोमास, लकड़ी गैर-परम्परागत ऊर्जा के स्त्रोत हैं।
वर्तमान मंे इसका अस्तित्व समाप्त हो गया हैं, क्योंकि 2002 में इसका विलय RREC (Rajasthan Renewable Energy Corporation) में कर दिया गया हैं।
छबड़ की स्थापित विद्युत क्षमता 250 मेगावाट की एक, 300 मेगावाट की एक, 500 मेगावाट की एक इकाई हैं। तीनों निर्माणाधीन हैं।
राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम द्वारा 6000 करोड़ लागत की 1552 मेगावाट की विभिन्न इकाईयाँ स्थापित करने की योजना 2007 में बनाई थी।
ये इकाईयाँ गिरल, धौलपुर, छबड़ा, कोटा में स्थापित की जाएगी।
कुटीर ज्योति योजना:-
यह सन 1998-99 में शुरू की गई।
इसमें BPL परिवारों को विद्युत कनेक्षन (1 बल्ब का) मुफ्त में देने की योजना हैं।
बायोगैस संयंत्र लगाने का कार्य खादीग्रामोद्योग विभाग द्वारा किया जाता हैं।
जिसके लिए 60 % अनुदान मिलता हैं।
इसके लिए पायलट प्रोजेक्ट चलाया गया था।
जब उत्तरी ग्रिड (जाल) फेल हो जाते हैं जो उसके स्टार्टअप के लिए बिजली राणाप्रताप सागर बांध विद्युत इकाई से मिलती हैं। इसकी स्थापित क्षमता 115 मेगावाट हैं।
2006 के अंत तक पवन ऊर्जा से 280 मेगावाट विद्युत उत्पादन होता था तथा बायोगैस से 38 मेगावाट उत्पादन होता था।
विद्युत परियोजनाएँ
सौर ऊर्जा:-
राजस्थान का पष्चिमी क्षेत्र जैसलमेर, जोधपुर, बाड़मेर, सौलर एनर्जी के लिए सर्वांधिक उपयुक्त जिले हैं।
इसी उद्देष्य से राजस्थान सरकार ने इन तीनों जिलो को सीज क्षेत्र घोषित किया हैं।
सौलर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए विष्व बैंक व जर्मनी की सहायता से प्रोजेक्ट लगाए जा रहे हैं।
जोधपुर के मथानिया में 140 मेगावाट का सौर ऊर्जा केन्द्र स्थापित करने की योजना प्रस्तावित हैं।
जोधपुर के बालेसर में पहला सौर फ्रिज स्थापित किया गया था।
अंतरिक्ष में छोड़े गए उपग्रहों को सौलर बैटरी से ऊर्जा मिलती है। (राष्ट्रपति भवन को भी ऊर्जा)
उदयपुर के फतेहसागर झील में नावें और सौर वैध शाला सौलर ऊर्जा से संचालित हैं।
उदयपुर के डबोक हवाई अड्डे का अधिकांष भाग सौलर ऊर्जा से संचालित हैं।
दक्षिणी-पष्चिमी राजस्थान सौर ऊर्जा के लिए सबसे उपयुक्त क्षेत्र हैं।
पवन ऊर्जा:-
राजस्थान का पष्चिमी क्षेत्र पवन ऊर्जा के लिए सर्वांधिक उपयुक्त हैं। जहां
वर्षं के अधिकांष महीनों में 20 से 40 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से हवा चलती हैं।
इंदिरा गांधी नहर क्षेत्र में (सीमावर्ती जिलें में) पवन ऊर्जा के लिए सर्वांधिक उपयुक्त हैं।
सामान्यतः पवन ऊर्जा के लिए वायु की गति 10-12 किलोमीटर प्रति घंटा होना आवष्यक हैं।
राजस्थान में जैसलमेर में अमरसागर, चित्तौड़गढ़ के देवगढ़ और जोधपुर के फलौदी में पवन ऊर्जा की तीन इकाईयाँ स्थापित की जा चुकी हैं।
2006 तक राजस्थान में 450 मेगावाट की इकाईयां प्रस्तावित हो चुकी हैं।
राज्य के अक्षय ऊर्जा निगम के द्वारा जैसमेर के सोढ़ा गांव में 25 मेगावाट की एक इकाई स्थापित की जा रही हैं।
बायोगैस (गोबरगैस):-
गोबरगैस का अविष्कार बी.सी.देसाई ने किया।
गांवों में दीनदयाल माॅडल सर्वांधिक प्रचलित हैं।
सन् 1981 में (छठी पंचवर्षीय योजना) यह कार्यक्रम (बायोगैस) शुरू किया गया।
इसमें गीला गोबर का उपयोग किया जाता हैं।
बायोमास:-
इसमें पेड़-पौधों की पत्तियां व घास-फूस काम मंे ली जाती हैं।
गंगानगर में सर्वांधिक प्रसिद्ध हैं।
लिग्नाईट आधारित विद्युत परियोजनाएँ:-
राजस्थान अच्छे किस्म के लिग्नाईट उत्पादन में प्रथम स्थान पर हैं।
लिग्नाइट के भण्डारण की दृष्टि में दूसरे स्थान पर हैं, पहला स्थान तमिलनाडु का एवं तीसरा स्थान गुजरात का हैं।
इसके उत्पादक जिलें निम्न हैं:- बाड़मेर , बीकानेर , नागौर
सबसे अच्छे किस्म का लिग्नाई पलाना में उत्पादित होता हैं।
कपुरड़ी (बाड़मेर):- लिग्नाइट उत्पादक क्षेत्र जहां 250 मेगावाट की इकाईयां स्थापित की जा रही हैं।
जालिप्पा (बाड़मेर):-यहां 250-250 मेगावाट की 4 इकाईयां निर्माणाधीन हैं।
गिरल (बाड़मेर):- 250 मेगावाट की एक इकाई स्थापित हैं।
सूरतगढ़ थर्मल पावर प्रोजेक्ट:-
थर्मल पावर प्राजेक्ट को NTPC द्वारा संचालित किया जाता हैं। (नेषनल थर्मल पावर कारपोरेषन)
सूरतगढ़ में कुल 6 इकाईयाँ स्थापित हैं।
सबसे कम 195 मेगावाट की हैं जिसका जनवरी 2007 में षिलान्यास हुआ था।
कुल स्थापित क्षमता 1440 मेगावाट हैं।
धौलपुर थर्मल पावर प्रोजेक्ट (गैस पर आधारित) (नेफ्था):- यह निर्माणाधीन हैं।
कोटा थर्मलपावर प्रोजेक्ट:-
यह सन् 1978 में स्थापित किया गया था।
यह राजस्थान का पहला सबसे बड़ा थर्मल पाॅवर प्रोजेक्ट था।
इसके अन्तर्गत कुल चार चरणों का निर्माण हुआ। जिसमें 6 इकईयां स्थापित की जा चुकी हैं।
इनकी कुल स्थापित क्षमता 1240 मेगावाट हैं।
छठी इकाई 195 मेगावाट की हैं।
सातवीं इकाई का षिलान्यास सन् 2006 में किया गया जिसमें उत्पादन 2008 के अंत मंे शुरू होगा।
राजस्थान से बाहर स्थित विद्युत परियोजनाएं, जिसमें राजस्थान की भागीदारी हैं:-
धौलीगंगा जल-विद्युत परियोजना:-
उत्तरांचल में धौलीगंगा नदी पर स्थित हैं।
जिससे राजस्थान को 75 मेगावाट बिजली मिलती हैं।
सिंगरौली सुपर थर्मल पावर प्रोजेक्ट:-
उत्तर-प्रदेष में स्थित।
इसकी स्थापित क्षमता 2050 मेगावाट हैं।
राजस्थान को 15 % अर्थात् 307.5 मेगावाट मिलती हैं।
नरौरा परमाणु ऊर्जा केन्द्र:-
यह उत्तरप्रदेष में स्थित हैं।
इससे राजस्थान को 9.6% बिजली मिलती हैं।
सतपुड़ा ताप विद्युत परियोजना:-
राजस्थान, मध्यप्रदेष व गुजरात की संयुक्त परियोजना हैं।
इसमंे राजस्थान को 1/3 भाग मिलेगा।
वर्तमान में 100 मेगावाट मिल रही हैं, कुल 100 मेगावाट का उत्पादन होता हैं।
रिहन्द सुपर थर्मल पावर प्रोजेक्ट:-
यह उत्तरप्रदेष में स्थित हैं।
राजस्थान को कुल उत्पादन का 9.5% प्राप्त होता हैं।
इसकी स्थापित क्षमता 1000 मेगावाट हैं।
औरभा ताप विद्युत परियोजना:-
यह उत्तरप्रदेष में स्थित हैं।
इससे राजस्थान को कुल 9.2 % बिजली प्राप्त होती हैं।
इसकी कुल क्षमता 952 मेगावाट हैं।
अंता ताप विद्युत परियोजना:-
यह बांरा में स्थित गैस आधारित परियोजना हैं।
इससे राजस्थान को कुल 19.8 % बिजली मिलेगी।
यह केन्द्र सरकार व राज्य सरकार की सम्मिलित परियोजना हैं।
इसकी कुल क्षमता 413 मेगावाट हैं।
भाखड़ा-नागंल परियोजना:-
इसके अंतर्गत 2 इकाईयां स्थापित हैं। पहली सुरगंगुवाल में व दूसरी कोटला में हैं।
इन दोनो इकाईयों से राजस्थान को 15.2 % बिजली मिलती हैं।
पोंग जल विद्युत परियोजना से 58 % बिजली राजस्थान को मिलती हैं।
देहर (हिमाचल प्रदेष) विद्युत परियोजना से 20% राजस्थान को मिलती हैं।
चम्बल नदी घाटी परियोजना से 50 % बिजली मिलती हैं। जो राजस्थान व मध्यप्रदेष के मध्य विभाजित होती हैं।
माही जल विद्युत परियोजना से 140 मेगावाट बिजली मिलती हैं। (जमनालाल बजाज सागर बांध)
इंदिरा गांधी नहर पर पूगल, सूरतगढ़, चारणवाली, अनुपगढ़ व बीसलपुर शाखाओं पर छोटी-छोटी जल विद्युत परियोजना स्थापित की गई हैं। (22 मेगावाट)
राहु घाट जल-विद्युत परियोजना हैं:-
यह करौली में चम्बल नदी पर निर्माणाधीन हैं।
यह 79 मेगावाट की विद्युत परियोजना हैं।
अनास जल-विद्युत परियोजना:- यह उदयपुर में स्थापित 45 मेगावाट की परियोजना हैं।
राजस्थान में सर्वांधिक विद्युत का उत्पादन थर्मल पाॅवर से होता है।
दूसरा स्थान जल-विद्युत का हैं।
तीसरा स्थान परमाणु ऊर्जा का हैं।
राजस्थान विद्युत मण्डल को 1999 में 3 भागों में बांटा गया हैं।
1. उत्पादन (जयपुर) 2. प्रसारण (जयपुर) 3. वितरण (जयपुर, जोधपुर, अजमेर)
2006 के दिसम्बर तक राजस्थान के 98% गांव विद्युतीकृत थें।
सूरतगढ़ में ताप विद्युत की पहली इकाई में उत्पादन कार्य सन् 1998 में शुरू हुआ था।
कोटा में उत्पादन कार्य सन् 1982 में शुरू हुआ था।
पहला स्थान:- सूरतगढ़ का, दूसरा स्थान:- कोटा का, तीसरा स्थान:- छबड़ा (बांरा) का हैं।
मार्च, 2007 तक राजस्थान की कुल स्थापित विद्युत क्षमता 5647 मेगावाट थी।
Rajasthan Energy Development Agency (REDA) (रेड़ा) :-
इसकी स्थापना सन् 1985 में की गई थी।
इसका उद्देष्य गैर-परम्परागत ऊर्जा स्त्रोतों का विकास करना था।
सौर-ऊर्जा, बायोगैस, पवन-ऊर्जा, बायोमास, लकड़ी गैर-परम्परागत ऊर्जा के स्त्रोत हैं।
वर्तमान मंे इसका अस्तित्व समाप्त हो गया हैं, क्योंकि 2002 में इसका विलय RREC (Rajasthan Renewable Energy Corporation) में कर दिया गया हैं।
छबड़ की स्थापित विद्युत क्षमता 250 मेगावाट की एक, 300 मेगावाट की एक, 500 मेगावाट की एक इकाई हैं। तीनों निर्माणाधीन हैं।
राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम द्वारा 6000 करोड़ लागत की 1552 मेगावाट की विभिन्न इकाईयाँ स्थापित करने की योजना 2007 में बनाई थी।
ये इकाईयाँ गिरल, धौलपुर, छबड़ा, कोटा में स्थापित की जाएगी।
कुटीर ज्योति योजना:-
यह सन 1998-99 में शुरू की गई।
इसमें BPL परिवारों को विद्युत कनेक्षन (1 बल्ब का) मुफ्त में देने की योजना हैं।
बायोगैस संयंत्र लगाने का कार्य खादीग्रामोद्योग विभाग द्वारा किया जाता हैं।
जिसके लिए 60 % अनुदान मिलता हैं।
इसके लिए पायलट प्रोजेक्ट चलाया गया था।
जब उत्तरी ग्रिड (जाल) फेल हो जाते हैं जो उसके स्टार्टअप के लिए बिजली राणाप्रताप सागर बांध विद्युत इकाई से मिलती हैं। इसकी स्थापित क्षमता 115 मेगावाट हैं।
2006 के अंत तक पवन ऊर्जा से 280 मेगावाट विद्युत उत्पादन होता था तथा बायोगैस से 38 मेगावाट उत्पादन होता था।
इस मे नैय वाली नही है जानकारी अधूरी है
ReplyDeleteमैं बाबु लाल गांव पीपाड़
ReplyDeleteमैं एक अलग तरह से विधुत उत्पन्न करने वाला शख्स हूं मुझे अपनी इस नई तकनीक के लिए सहयोग की ज़रूरत है अगर आप को इ सरकार से विधुत उत्पन्न करने में सहायता मिलती है तो