राजस्थान के अभ्यारण्य
राजस्थान के अभ्यारण्य
- राष्ट्रीय मरू उद्यान:-
> जैसलमेर व बाड़मेर में स्थित हैं।
> सर्वांधिक जैसलमेर में फैला हुआ हैं।
> इस अभ्यारण्य से होकर राष्ट्रीय राजमार्ग 15 गुजरता हैं।
> इसकी स्थापना वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अर्न्तगत सन् 1980 में की गई।
> इस अभयारण्य में करोड़ों वर्ष पुराने काष्ठ अवषेष, डायनोसोर के अण्डे के अवषेष प्राप्त हुए हैं।
> इन अवषेषों को सुरक्षित रखने के लिए अभयारण्य के भीतर अकाल गांव में ‘फॉसिल्स पार्क’ स्थापित किया गया हैं (अकाल काष्ठ उद्यान)।
> गोड़ावन पक्षी इस उद्यान में (मरू उद्यान) में सर्वांधिक पाया जाता हैं।
> इस पक्षी का नाम:- ग्रेट इंडियन बर्ड, माल मोरड़ी हैं।
> जोधपुर मं इस पक्षी का प्रजनन केंद्र हैं।
> सेवण घास इस अभयारण्य में सर्वांधिक पायी जाती हैं।
> इसमें सर्वांधिक आखेट निषिद्ध क्षेत्र स्थित हैं।
> आखेट निषिद्ध क्षेत्र 33 हैं (ओरण)
> सबसे बड़ा 3200 वर्ग किलोमीटर
- रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान:-
> यह सवांईमाधोपुर में हैं।
> इसका पुराना नाम रण स्तम्भपुर हैं।
> ये सवांईमाधोपुर के शासकों का आखेट क्षेत्र था। जिसे सन् 1955 में अभयारण्य घोषित कर दिया गया।
> वन्य जीव सरंक्षण अधिनियम, 1972 के अन्तर्गत सन् 1973 में इसे टाईगर प्रोजेक्ट में शामिल किया गया हैं।
> राजस्थान का पहला टाईगर प्रोजेक्ट था।
> टाईगर प्रोजेक्ट, 1972 के अधिनियम में शुरू किया गया था। जिसमें विभिन्न जीवों को संरक्षण दिया गया।
> सन् 1980 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। इस अभ्यारण्य की देख-रेख विष्व वन्य जीव कोष (World Wild Life Fund, WWF) द्वारा की जाती हैं। WWF का प्रतीक सफेद पांडा हैं।
- सरिस्का वन्य जीव अभयारण्य:-
> यह अलवर में स्थित हैं। इस सन् 1955 में उद्यान घोषित किया गया।
> सन् 1973 में टाईगर प्रोजेक्ट में शामिल किया गया।
> इस अभयारण्य में भर्तृहरि की समाधि स्थित हैं। जहां पर सालों भर घील का दीपक जलता हैं।
> पाण्डुपोल, लेटे हुए हनुमानजी का मंदिर स्थित हैं।
> राजसमन्द झील अभयारण्य स्थित हैं।
> राष्ट्रीय राजमार्ग 8 इस अभ्यारण्य से होकर गुजरता हैं।
- केवलादेवी अभयारण्य:-
> यह भरतपुर में स्थित पक्षी अभयारण्य हैं।
> इसे सन् 1956 में अभयारण्य घोषित किया गया था।
> सन् 1981 में इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया।
> सन् 1985 में विष्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया।
> यह अभयारण्य पक्षियों की संरक्षण स्थली व स्वर्ग के रूप में जाना जाता हैं।
> N.H. 11 इस अभ्यारण्य से होकर गुजरता हैं।
> इस अभयारण्य में पाए जाने वाले पक्षी:- साइबेरिया सारस (नवम्बर में आते हैं), अंध बगुला, पनडुब्बी, कठफोवड़ा, कबुतर, गीज, मेलाड़ आदि।
- राष्ट्रीय चम्बल अभयारण्य:-
> चम्बल नदी में चित्तौड़गढ़, कोटा, सवांईमाधोपुर, करौली, धौलपुर में स्थित भारत का एकमात्र घड़ियाल अभ्यारण्य हें।
> इसकी स्थापना सन् 1976 में की गई थी।
> भैंसरोड़गढ़ अभयारण्य, जवाहर सागर अभयारण्य चम्बल अभयारण्य के भाग हैं।
> ये सभी घड़ियाल अभयारण्य है।ं
> चम्बल नदी में डाल्फिन मछली भी पाई जाती हैं। जिसे ‘गांगेय सूस’ कहते हें।
> घड़ियाल प्रजनन केन्द्र:-
1. मुरैना में (मध्यप्रदेष) 2. नाहरगढ़ (जयपुर)
> यह अभयारण्य राजस्थान, मध्यप्रदेष और उत्तरप्रदेष की संयुक्त परियोजना हैं।
- दर्रा राष्ट्रीय उद्यान:-
> इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा नहीं मिला हें।
> यह कोटा में चम्बल नदीके आसपास स्थित हैं।
> इसका नया नाम ‘मुकन्दरा हिल्स नेषनल पार्क’ हैं।
> इसका कुछ विस्तार झालावाड़ में भी हैं।
> इसकी स्थापना का उद्देष्य रणथम्बौर तथा चम्बल अभयारण्य के पशु-पक्षियों के लिए क्षेत्र विस्तार करना हैं।
- खण्डार गलियारा:-
> यह सवांईमाधोपुर में स्थित हैं जो रणथम्भौर व चम्बल, दर्रा अभयारण्य को जोड़ेगा।
- सीतामाता अभयारण्य:-
> इसका अधिकांष भाग चित्तौड़गढ़ मंे स्थित हैं।
> इस अभयारण्य में उड़न गिलहरी पाई जाती हैं।
> एषिया का दूसरा स्थान जहां यह गिलहरी पाई जाती हैं।
- तालछापर अभयारण्य:-
> यह चुरू में स्थित हैं।
> यह काले हिरणों के लिए प्रसिद्ध हैं।
> कभी यहां पर कबूतर पाये जाते थें।
- माऊण्ट आबू अभयारण्य:-
> इस अभयारण्य में जंगली मुर्गा तथा एक विषेष प्रकार का पौधा ‘डीरकिलपटेरा आबू एनसिस’ पाया जाता हैं।
> माऊण्ट आबू अभयारण्य की मान्यता समाप्त होने के कगार पर हैं।
- गजनेर अभयारण्य:-
> इसमें रेत का तीतर, जिसे बटबड़ भी कहते हैं, पाया जाता हैं।
- कुंभलगढ़ अभयारण्य:-
> यह अभयारण्य राजसमन्द में स्थित हैं।
> यह जंगली भेड़ियों के लिए प्रसिद्ध हैं।
- सज्जनगढ़ अभयारण्य:-
> यह उदयपुर में स्थित हैं। यह राजस्थान का सबसे छोटा अभयारण्य हैं।
> इसे मृगन के रूप में स्थापित किया गया था।
> सज्जन सिंह उदयपुर के महाराणा थे जिनके प्रयासों से सज्जन कीर्ति सुधारक नामक अखबार चलाया गया।
- फलवारी की लाल अभयारण्य:-
> यह उदयपुर में स्थित हैं।
- रावली-टाड़गढ़ अभयारण्य:-
> यह अजमेर,पाली व राजसमन्द में फैला हुआ हैं।
> यहां एक किला भी हैं, जिसे टाड़गढ़ का किला कहते हैं, जो अजमेर में हैं।
> इस किले का निर्माण कर्नल जेम्स टॉड ने करवाया था।
> यहां स्वंतत्रता आंदोलन के समय राजनैतिक कैदियों को कैद रखा जाता था।
> विजयसिंह पथिक उर्फ भूपसिंह को इसमें कैद रखा गया था।
- वन-विहार अभयारण्य:-
> यह धौलपुर में स्थित हैं।
- कनक सागर अभयारण्य:-
> यह बूंदी में स्थित हैं।
> इसे दुगारी अभयारण्य भी कहते हैं।
- बस्सी अभयारण्य:-
> यह चित्तौड़गढ़ में स्थित हैं।
> चित्तौड़गढ़ की बस्सी काष्ठ कला (कावड़, गणगौर, कठपुतली) के लिए प्रसिद्ध हैं।
> जयपुर की बस्सी डेयरी उद्योग के लिए।
- नाहरगढ़ अभयारण्य:-
> यह जयपुर में स्थित हैं।
> यह एक जैविक उद्यान हैं, जहां घड़ियाल प्रजनन केन्द्र भी है।
- शेरगढ़ अभयारण्य:-
> यह बांरा में स्थित हैं। यहां पर सर्प उद्यान भी हैं।
- बंद बारेठा अभयारण्य:-
> यह भरतपुर में स्थित हैं।
> यह केवलादेव अभयारण्य का हिस्सा हैं।
> इसमें बया पक्षी सर्वांधिक पाया जाता हैं।
- भैंसरोड़गढ़ अभयारण्य:-
> यह चित्तौड़गढ़ में स्थित हैं।
> यह चम्बल और बामनी नदी कें चारें ओर फैला हुआ हैं।
> बमनी नदी चम्बल में बांए से मिलती हैं।
- जमावारामगढ़ अभयारण्य:-
> यह जयुपर में स्थित हैं।
- कैलादेवी अभयारण्य:-
> यह करौल में स्थित हैं।
> यहां देववन (ओरण) भी हैं।
- जयसमंद अभयारण्य:-
> यह उदयपुर में पाली एवं राजसमन्द के बीच स्थित हैं।
- मचिया सफारी पार्क:-
> यह जोधपुर में स्थित, काले हिरणों के लिए सुरक्षित अभयारण्य हैं।
- अमृतादेवी कृष्ण मृग पार्क:-
> यह जोधपुर मे खेजड़ली गांव के आस-पास स्थित हैं।
> भाद्रपद शुक्ल पक्षी की नवमी को खेजड़ली गांव में मेला भरता हैं।
- रामगढ़ विषधारी अभयारण्य:-
> यह बूंदी में स्थित हैं। यह बूंदी के शासकों का आखेट क्षेत्र था।
- रणथम्भौर में भ्रमण करने वाले व्यक्ति:- बिल क्लिंटन, प्रिंस चार्ल्स, मनमोहनसिंह, प्रकाश सिंह बादल, इंदिरा गांधी।
- राजस्थान के मृगवन:-
> सज्जनगढ़ मृगवन:- उदयपुर में
> माचिया सफारी:- जोधपुर में, कायलाना झील के आसपास
> कायलाना झील से जोधपुर को पीने का पानी मिलता हैं।
> चित्तौड़गढ़ मृगवन:- चित्तौड़गढ़ दुर्ग के आसपास स्थित हैं।
> अमृतादेवी मृगवन:- जोधपुर के खेजड़ली गांव में स्थित हैं।
> अशोक विहार मृगवन:- यह जयपुर में स्थित हैं।
> संजय उद्यान:- जयपुर के शाहपुरा क्षेत्र में स्थित हैं।
> पुष्कर मृगवन:- अजमेंर में स्थित हैं।
- आखेट निषिद्ध क्षेत्र:-
> सोरसन:- यह बांरा में स्थित हैं, गोड़ावन पक्षी का संरक्षण स्थल हैं।
> सोंखलिया/सोंकलिया:- यह अजमेर में स्थित हैं, गोड़ावन पक्षी का संरक्षण स्थल हैं।
> उजला:- यह जैसलमेर में स्थित हैं, काले हिरणों का संरक्षण स्थल है।
> बरड़ोद और जोड़िया:- यह अलर में स्थित हैं।
> फिटकासनी:- यह जोधपुर में स्थित हैं।
> साथिन:- यह जोधपुर में स्थित है।
> मैनाल:- यह चित्तौड़गढ़ में स्थित हैं।
> जवांई बांध:- यह पाली में स्थित हैं।
> धौरीमना:- यह बाड़मेंर में स्थित हैं।
> केवलाजी:- यह सवांईमाधोपुर में स्थित हैं।
> सर्वांधिक आखेट क्षेत्र (क्षेत्रफल):- जोधपुर में
- वन्य जीवों से सम्बन्धित महत्वपूर्ण बिन्दू:-
> सन् 1972 में वन्य जीवों के संरक्षण के लिए अधिनियम बनाया गया, जिसकें अन्तर्गत राजस्थान में 33 आखेट निषिद्ध क्षेत्र घोषित किए गए।
> सन् 2004 में वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए नेचर गाई पॉलिसी बनाई गई, जिसे 2006 में जारी किया गया था।
> राजस्थान में पहला वन्यजीव संरक्षण अधिनिमय, 1950 बनायागया।
> वर्तमानमें 1972 का अधिनियम लागू हैं।
> 1972 का अधिनियम राजस्थान में सन् 1973 में लागू हुआ।
> उत्तर भारत का पहला सर्प उद्यान कोटा में स्थापित हैं।
> डॉक्टर सलीम अली पक्षी विषेषज्ञ हैं।
> स्लीम अली इन्टरप्रिटेषन सेंटर केवलादेव अभयारण्य में स्थापित हैं।
> राजस्थान में लुप्त होने वाले जीवों में पहला स्थान गोड़ावन का, डॉल्फिन मछली का, बाघों का हैं।
> सर्वांधिक लुप्त होने वाली जीवों का उल्लेख रेड डाटा बुक में, संभावना वाले येलो बुल में में उल्लेखित किये जाते हैं।
> कैलाष सांखला टाईगर मैन ऑफ इण्डिया जोधुपर के थे।
> पुस्तक:- रिर्टन ऑफ द टाईग्र, टाईगर
> बाघ परियोजना कैलाष सांखला ने बनाई थी।
> वन्य जीव सीमार्ती सूची 42 के अंतर्गत आते हैं।
> सन् 1976 के संषोधन के द्वारा इसे सीमावर्ती सूची में डाला गया हैं।
> राजस्थान में जोधपुर पहली रियासत थी जिसने वन्य जीवों को बचाने के लिए कानून बनाया।
> पहला टाईगर सफारी पार्क रणथम्भौर अभयारण्य में स्थापित किया गया था।
> वन्य जीवों की संख्याा की दृष्टि से राजस्थान का दूसरा स्थान हैं।
> सर्वांधिक वन्यजीव असम में हैं।
> बीकानेर, जैसलमेर व बाड़मेर में गोड़ावन पक्षी सर्वांधिक पाये जातें हैं। सबसे अधिक जैसलमेर में पाये जाते हैं।
> सर्वांधिक कृष्ण मृग डोलीधोवा (जोधपुर व बाड़मेर) में पाये जाते हैं।
राजस्थान के अभ्यारण्य
- राष्ट्रीय मरू उद्यान:-
> जैसलमेर व बाड़मेर में स्थित हैं।
> सर्वांधिक जैसलमेर में फैला हुआ हैं।
> इस अभ्यारण्य से होकर राष्ट्रीय राजमार्ग 15 गुजरता हैं।
> इसकी स्थापना वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अर्न्तगत सन् 1980 में की गई।
> इस अभयारण्य में करोड़ों वर्ष पुराने काष्ठ अवषेष, डायनोसोर के अण्डे के अवषेष प्राप्त हुए हैं।
> इन अवषेषों को सुरक्षित रखने के लिए अभयारण्य के भीतर अकाल गांव में ‘फॉसिल्स पार्क’ स्थापित किया गया हैं (अकाल काष्ठ उद्यान)।
> गोड़ावन पक्षी इस उद्यान में (मरू उद्यान) में सर्वांधिक पाया जाता हैं।
> इस पक्षी का नाम:- ग्रेट इंडियन बर्ड, माल मोरड़ी हैं।
> जोधपुर मं इस पक्षी का प्रजनन केंद्र हैं।
> सेवण घास इस अभयारण्य में सर्वांधिक पायी जाती हैं।
> इसमें सर्वांधिक आखेट निषिद्ध क्षेत्र स्थित हैं।
> आखेट निषिद्ध क्षेत्र 33 हैं (ओरण)
> सबसे बड़ा 3200 वर्ग किलोमीटर
- रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान:-
> यह सवांईमाधोपुर में हैं।
> इसका पुराना नाम रण स्तम्भपुर हैं।
> ये सवांईमाधोपुर के शासकों का आखेट क्षेत्र था। जिसे सन् 1955 में अभयारण्य घोषित कर दिया गया।
> वन्य जीव सरंक्षण अधिनियम, 1972 के अन्तर्गत सन् 1973 में इसे टाईगर प्रोजेक्ट में शामिल किया गया हैं।
> राजस्थान का पहला टाईगर प्रोजेक्ट था।
> टाईगर प्रोजेक्ट, 1972 के अधिनियम में शुरू किया गया था। जिसमें विभिन्न जीवों को संरक्षण दिया गया।
> सन् 1980 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। इस अभ्यारण्य की देख-रेख विष्व वन्य जीव कोष (World Wild Life Fund, WWF) द्वारा की जाती हैं। WWF का प्रतीक सफेद पांडा हैं।
- सरिस्का वन्य जीव अभयारण्य:-
> यह अलवर में स्थित हैं। इस सन् 1955 में उद्यान घोषित किया गया।
> सन् 1973 में टाईगर प्रोजेक्ट में शामिल किया गया।
> इस अभयारण्य में भर्तृहरि की समाधि स्थित हैं। जहां पर सालों भर घील का दीपक जलता हैं।
> पाण्डुपोल, लेटे हुए हनुमानजी का मंदिर स्थित हैं।
> राजसमन्द झील अभयारण्य स्थित हैं।
> राष्ट्रीय राजमार्ग 8 इस अभ्यारण्य से होकर गुजरता हैं।
- केवलादेवी अभयारण्य:-
> यह भरतपुर में स्थित पक्षी अभयारण्य हैं।
> इसे सन् 1956 में अभयारण्य घोषित किया गया था।
> सन् 1981 में इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया।
> सन् 1985 में विष्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया।
> यह अभयारण्य पक्षियों की संरक्षण स्थली व स्वर्ग के रूप में जाना जाता हैं।
> N.H. 11 इस अभ्यारण्य से होकर गुजरता हैं।
> इस अभयारण्य में पाए जाने वाले पक्षी:- साइबेरिया सारस (नवम्बर में आते हैं), अंध बगुला, पनडुब्बी, कठफोवड़ा, कबुतर, गीज, मेलाड़ आदि।
- राष्ट्रीय चम्बल अभयारण्य:-
> चम्बल नदी में चित्तौड़गढ़, कोटा, सवांईमाधोपुर, करौली, धौलपुर में स्थित भारत का एकमात्र घड़ियाल अभ्यारण्य हें।
> इसकी स्थापना सन् 1976 में की गई थी।
> भैंसरोड़गढ़ अभयारण्य, जवाहर सागर अभयारण्य चम्बल अभयारण्य के भाग हैं।
> ये सभी घड़ियाल अभयारण्य है।ं
> चम्बल नदी में डाल्फिन मछली भी पाई जाती हैं। जिसे ‘गांगेय सूस’ कहते हें।
> घड़ियाल प्रजनन केन्द्र:-
1. मुरैना में (मध्यप्रदेष) 2. नाहरगढ़ (जयपुर)
> यह अभयारण्य राजस्थान, मध्यप्रदेष और उत्तरप्रदेष की संयुक्त परियोजना हैं।
- दर्रा राष्ट्रीय उद्यान:-
> इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा नहीं मिला हें।
> यह कोटा में चम्बल नदीके आसपास स्थित हैं।
> इसका नया नाम ‘मुकन्दरा हिल्स नेषनल पार्क’ हैं।
> इसका कुछ विस्तार झालावाड़ में भी हैं।
> इसकी स्थापना का उद्देष्य रणथम्बौर तथा चम्बल अभयारण्य के पशु-पक्षियों के लिए क्षेत्र विस्तार करना हैं।
- खण्डार गलियारा:-
> यह सवांईमाधोपुर में स्थित हैं जो रणथम्भौर व चम्बल, दर्रा अभयारण्य को जोड़ेगा।
- सीतामाता अभयारण्य:-
> इसका अधिकांष भाग चित्तौड़गढ़ मंे स्थित हैं।
> इस अभयारण्य में उड़न गिलहरी पाई जाती हैं।
> एषिया का दूसरा स्थान जहां यह गिलहरी पाई जाती हैं।
- तालछापर अभयारण्य:-
> यह चुरू में स्थित हैं।
> यह काले हिरणों के लिए प्रसिद्ध हैं।
> कभी यहां पर कबूतर पाये जाते थें।
- माऊण्ट आबू अभयारण्य:-
> इस अभयारण्य में जंगली मुर्गा तथा एक विषेष प्रकार का पौधा ‘डीरकिलपटेरा आबू एनसिस’ पाया जाता हैं।
> माऊण्ट आबू अभयारण्य की मान्यता समाप्त होने के कगार पर हैं।
- गजनेर अभयारण्य:-
> इसमें रेत का तीतर, जिसे बटबड़ भी कहते हैं, पाया जाता हैं।
- कुंभलगढ़ अभयारण्य:-
> यह अभयारण्य राजसमन्द में स्थित हैं।
> यह जंगली भेड़ियों के लिए प्रसिद्ध हैं।
- सज्जनगढ़ अभयारण्य:-
> यह उदयपुर में स्थित हैं। यह राजस्थान का सबसे छोटा अभयारण्य हैं।
> इसे मृगन के रूप में स्थापित किया गया था।
> सज्जन सिंह उदयपुर के महाराणा थे जिनके प्रयासों से सज्जन कीर्ति सुधारक नामक अखबार चलाया गया।
- फलवारी की लाल अभयारण्य:-
> यह उदयपुर में स्थित हैं।
- रावली-टाड़गढ़ अभयारण्य:-
> यह अजमेर,पाली व राजसमन्द में फैला हुआ हैं।
> यहां एक किला भी हैं, जिसे टाड़गढ़ का किला कहते हैं, जो अजमेर में हैं।
> इस किले का निर्माण कर्नल जेम्स टॉड ने करवाया था।
> यहां स्वंतत्रता आंदोलन के समय राजनैतिक कैदियों को कैद रखा जाता था।
> विजयसिंह पथिक उर्फ भूपसिंह को इसमें कैद रखा गया था।
- वन-विहार अभयारण्य:-
> यह धौलपुर में स्थित हैं।
- कनक सागर अभयारण्य:-
> यह बूंदी में स्थित हैं।
> इसे दुगारी अभयारण्य भी कहते हैं।
- बस्सी अभयारण्य:-
> यह चित्तौड़गढ़ में स्थित हैं।
> चित्तौड़गढ़ की बस्सी काष्ठ कला (कावड़, गणगौर, कठपुतली) के लिए प्रसिद्ध हैं।
> जयपुर की बस्सी डेयरी उद्योग के लिए।
- नाहरगढ़ अभयारण्य:-
> यह जयपुर में स्थित हैं।
> यह एक जैविक उद्यान हैं, जहां घड़ियाल प्रजनन केन्द्र भी है।
- शेरगढ़ अभयारण्य:-
> यह बांरा में स्थित हैं। यहां पर सर्प उद्यान भी हैं।
- बंद बारेठा अभयारण्य:-
> यह भरतपुर में स्थित हैं।
> यह केवलादेव अभयारण्य का हिस्सा हैं।
> इसमें बया पक्षी सर्वांधिक पाया जाता हैं।
- भैंसरोड़गढ़ अभयारण्य:-
> यह चित्तौड़गढ़ में स्थित हैं।
> यह चम्बल और बामनी नदी कें चारें ओर फैला हुआ हैं।
> बमनी नदी चम्बल में बांए से मिलती हैं।
- जमावारामगढ़ अभयारण्य:-
> यह जयुपर में स्थित हैं।
- कैलादेवी अभयारण्य:-
> यह करौल में स्थित हैं।
> यहां देववन (ओरण) भी हैं।
- जयसमंद अभयारण्य:-
> यह उदयपुर में पाली एवं राजसमन्द के बीच स्थित हैं।
- मचिया सफारी पार्क:-
> यह जोधपुर में स्थित, काले हिरणों के लिए सुरक्षित अभयारण्य हैं।
- अमृतादेवी कृष्ण मृग पार्क:-
> यह जोधपुर मे खेजड़ली गांव के आस-पास स्थित हैं।
> भाद्रपद शुक्ल पक्षी की नवमी को खेजड़ली गांव में मेला भरता हैं।
- रामगढ़ विषधारी अभयारण्य:-
> यह बूंदी में स्थित हैं। यह बूंदी के शासकों का आखेट क्षेत्र था।
- रणथम्भौर में भ्रमण करने वाले व्यक्ति:- बिल क्लिंटन, प्रिंस चार्ल्स, मनमोहनसिंह, प्रकाश सिंह बादल, इंदिरा गांधी।
- राजस्थान के मृगवन:-
> सज्जनगढ़ मृगवन:- उदयपुर में
> माचिया सफारी:- जोधपुर में, कायलाना झील के आसपास
> कायलाना झील से जोधपुर को पीने का पानी मिलता हैं।
> चित्तौड़गढ़ मृगवन:- चित्तौड़गढ़ दुर्ग के आसपास स्थित हैं।
> अमृतादेवी मृगवन:- जोधपुर के खेजड़ली गांव में स्थित हैं।
> अशोक विहार मृगवन:- यह जयपुर में स्थित हैं।
> संजय उद्यान:- जयपुर के शाहपुरा क्षेत्र में स्थित हैं।
> पुष्कर मृगवन:- अजमेंर में स्थित हैं।
- आखेट निषिद्ध क्षेत्र:-
> सोरसन:- यह बांरा में स्थित हैं, गोड़ावन पक्षी का संरक्षण स्थल हैं।
> सोंखलिया/सोंकलिया:- यह अजमेर में स्थित हैं, गोड़ावन पक्षी का संरक्षण स्थल हैं।
> उजला:- यह जैसलमेर में स्थित हैं, काले हिरणों का संरक्षण स्थल है।
> बरड़ोद और जोड़िया:- यह अलर में स्थित हैं।
> फिटकासनी:- यह जोधपुर में स्थित हैं।
> साथिन:- यह जोधपुर में स्थित है।
> मैनाल:- यह चित्तौड़गढ़ में स्थित हैं।
> जवांई बांध:- यह पाली में स्थित हैं।
> धौरीमना:- यह बाड़मेंर में स्थित हैं।
> केवलाजी:- यह सवांईमाधोपुर में स्थित हैं।
> सर्वांधिक आखेट क्षेत्र (क्षेत्रफल):- जोधपुर में
- वन्य जीवों से सम्बन्धित महत्वपूर्ण बिन्दू:-
> सन् 1972 में वन्य जीवों के संरक्षण के लिए अधिनियम बनाया गया, जिसकें अन्तर्गत राजस्थान में 33 आखेट निषिद्ध क्षेत्र घोषित किए गए।
> सन् 2004 में वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए नेचर गाई पॉलिसी बनाई गई, जिसे 2006 में जारी किया गया था।
> राजस्थान में पहला वन्यजीव संरक्षण अधिनिमय, 1950 बनायागया।
> वर्तमानमें 1972 का अधिनियम लागू हैं।
> 1972 का अधिनियम राजस्थान में सन् 1973 में लागू हुआ।
> उत्तर भारत का पहला सर्प उद्यान कोटा में स्थापित हैं।
> डॉक्टर सलीम अली पक्षी विषेषज्ञ हैं।
> स्लीम अली इन्टरप्रिटेषन सेंटर केवलादेव अभयारण्य में स्थापित हैं।
> राजस्थान में लुप्त होने वाले जीवों में पहला स्थान गोड़ावन का, डॉल्फिन मछली का, बाघों का हैं।
> सर्वांधिक लुप्त होने वाली जीवों का उल्लेख रेड डाटा बुक में, संभावना वाले येलो बुल में में उल्लेखित किये जाते हैं।
> कैलाष सांखला टाईगर मैन ऑफ इण्डिया जोधुपर के थे।
> पुस्तक:- रिर्टन ऑफ द टाईग्र, टाईगर
> बाघ परियोजना कैलाष सांखला ने बनाई थी।
> वन्य जीव सीमार्ती सूची 42 के अंतर्गत आते हैं।
> सन् 1976 के संषोधन के द्वारा इसे सीमावर्ती सूची में डाला गया हैं।
> राजस्थान में जोधपुर पहली रियासत थी जिसने वन्य जीवों को बचाने के लिए कानून बनाया।
> पहला टाईगर सफारी पार्क रणथम्भौर अभयारण्य में स्थापित किया गया था।
> वन्य जीवों की संख्याा की दृष्टि से राजस्थान का दूसरा स्थान हैं।
> सर्वांधिक वन्यजीव असम में हैं।
> बीकानेर, जैसलमेर व बाड़मेर में गोड़ावन पक्षी सर्वांधिक पाये जातें हैं। सबसे अधिक जैसलमेर में पाये जाते हैं।
> सर्वांधिक कृष्ण मृग डोलीधोवा (जोधपुर व बाड़मेर) में पाये जाते हैं।
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