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Thursday, May 17, 2018

राजस्थान में वनस्पति

राजस्थान में वनस्पति
वनस्पति
राजस्थान में सामान्य रूप से उष्ण कटिबंधीय वनस्पति पाई जाती हैं।
ऊँचाई पर पाई जाने वाली वनस्पति उपोष्ण कटिबन्धीय कहलाती हैं। जिसमें शीतोष्ण व उष्ण दोनो वनस्पति की विषेषताएँ होती हैं, इसलिए उपोष्ण कहते हैं।
वनस्पति का वर्गीकरण:-
शुष्क सागवान वन:-

    सगवान का पेड़ मानसूनी जलवायु/मानसूनी वनस्पति का पेड़ हैं (सागवान सर्वांधिक भारत में) जो शुष्क पर्णपाती वनों के अंतर्गत आता हैं।
    राजस्थान में सागवान के पेड़ डुंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर, चित्तौड़गढ़ में पाए जाते हैं। जो राजस्थान के कुल वन क्षेत्र का 7 % हैं। अर्थात् 7 % भाग परसागवान के वन पाए जाते हैं।
    सागवान के पेड़ बांसवाड़ा वन मण्डल में सर्वांधिक पाए जाते हैं।
    राजस्थान में कुल 13 वन मण्डल हैं, सबसे बड़ा वन मण्डल जोधपुर वन मण्डल हैं। (पूरा पष्चिमी क्षेत्र इसी में आता हैं)

मिश्रित वन:-

    अरावली के सम्पूर्ण पूर्वी भाग में पाए जाते हैं, इसके अन्तर्गत ढ़ाक, खैर, धोकड़ा, महुआ, पलास आदि पाए जाते हैं।
    इस प्रकार की वनस्पति सीमावर्ती क्षेत्रों में सर्वाधिक घनी हैं। जैसे:- सिरोही, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, कोटा, बांरा, सवंाईमाधोपुर, करौली, धौलपुर (इन सभी क्षेत्र में 20 % से अधिक वन क्षेत्र हैं)

ढ़ाक:-

    ढ़ाक के पतल बनाए जाते हैं।
    ढ़ाक के पेड़ टोंक, सवांईमाधोपुर, अलवर, जयपुर, बांरा, झालावाड़ में सर्वांधिक पाए जाते है।

खैर:-

    खैर के छाल से कत्था बनता हैं।
    खैर के पेड़ उदयपुर, राजसमन्द, चित्तौड़गढ़, कोटा, टोंक, झालावाड़ मेकं सर्वांधिक पाए जाते हैं।

धोकड़ा/धोक:-

    उत्तरी-पूर्वी राजस्थान में सर्वांधिक पाया जाता हैं। इससे कृषि के औजार बनाए जाते हैं।
    अलवर, भरतपुर, करौली, सवांईमाधोपुर, चित्तौड़गढ़ आदि जिलो में पाया जाता हैं।
    इससे लकड़ी का कोयला/काष्ठ कोयला बनाया जाता हैं।

अरडु:-

    सवांई माधोपुर, बांरा, करौली, कोटा में सर्वांधिक पाया जाता हैं।
    यह एक मुलायम पेड़ होता हैं। जिसका प्रयोग माचिस, कठपुतलियाँ, गणगौर बनाने में किया जाता हैं।

महुआ:-

    राजस्थान के दक्षिणी-पूर्वी जिलों के सीमावर्ती क्षेत्रों में सर्वांधिक पाया जाता हैं।
    यह आदिवासीयों का सबसे प्रिय पेड़ हैं।
    इससे शराब बनती हैं, इसके फल-फूल खाए जाते हैं।

बांस:-

    बांस एक प्रकार की घास हैं, विष्व की सबसे लम्बी घास व तीव्र गति से बढ़ने वाली घास, रात में सर्वांधिक वृद्धि, मक्का भी रात में सर्वांधिक वृद्धि करता हैं।
    इसे आदिवासियों का हरा सोना कहते हैं।
    राजस्थान के दक्षिण मंे सर्वांधिक पाए जाते हैं।

अन्य पेड़:- सीताफल, बैर, पीपल, जामुन, तेदुं।
तेदुं:-

    इसके पत्ते से बीड़ी बनती हैं
    इसके पेड़ सर्वांधिक अजमेर, टोंक, राजसमन्द, अलवर, भीलवाड़ा में पाए जाते हैं।

शुष्क वन:-

    इस वनस्पति को जेराफाइट/मरूस्थलीय वनस्पति कहते हैं।
    इस वनस्पति में पत्ते कांटो के रूप में, जड़े गहरी, छाल मोटी व कठोर पाई जाती हैं।
    जैसे:- रोहिड़ा, कैर, साल, कुमटा, बबुल, नागफनी, कैक्ट्स आदि।
    शुष्क वनों का अत्यधिक कठोर होने का मुख्य कारण अत्यधिक गर्मी हैं।

नोट:-

     अरावली के पष्चिम में वनों का अनुपात सबसे कम हैं।
    चुरू में 0.5 %, बाड़मेर में 1.5%, जोधपुर में 1 %, बीकानेर में 4.6%, गंगानगर व हनुमानगढ़ में 4.2%, झुन्झनु में 6.8 %, पाली में 7.4%
    जैसलमेर में बाड़मेर की तुलना में वनों का क्षेत्रफल सर्वांधिक हैं।
    सिरोही में वनों का प्रतिषत (घनत्व) 31% हैं।
    उदयपुर व राजसमन्द का क्षेत्रफल 29.4% हैं।
    सवांईमाधोपुर व करौली का 27.6% है।
    कोटा व बांरा का 28.8% हैं।
    झालावाड़ का 21%, धौलपुर का 21%, बांसवाड़ा का 23.6%
    चित्तौड़गढ़ का 24.3%
    राजस्थान में वनों का क्षेत्रफल 9.4%-9.32% हैं।

उष्णकटिबंधीय (आद्र्र उष्ण सदाबहार वनस्पति):-

    इस प्रकार की वनस्पति राजस्थान के दक्षिण में बांसवाड़ा, उदयपुर, प्रतापगढ़, सिरोही के सीमावर्ती क्षेत्र में पायी जाती हैं।
    इसके अंतर्गत बांस, सागवान, आम के पेड़ सर्वांधिक पाए जाते हैं।

नोट:- राजस्थान की कुल वनस्पति का 16 % भाग उदयपुर में पाया जाता हैं।
वनस्पति से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु:-

    राजस्थान में आरक्षित वनों (मानवीय हस्तक्षेप नहीं) का प्रतिषत 39 % हैं।
    राजस्थान में संरक्षित सुरक्षित वनों का प्रतिषत 51 % हैं। (चराई, कटाई)
    राजस्थान में अवर्गीकृत वनों का प्रतिषत 10 % हैं।
    किसी भी प्रदेष में 1/3 भाग पर वन होना आवष्यक हैं।

ओरण:-

    धार्मिंक आस्था से जुड़ा वन क्षेत्र हैं।
    जहां वनों की कटाई धार्मिंक आस्था के कारण नहीं होती हैं।

खस:-

    यह एक विषेष प्रकार की सुगन्धित घास होती हैं।
    जिसके बीज का उपयोग शर्बत/ठंडाई बनाने में किया जाता है।
    यह भरतपुर, सवांईमाधोपुर (सर्वांधिक) व टोंक में सर्वांधिक होती हैं।

गोंद:-

    बाड़मेर के चोहटन का प्रसिद्ध हैं, जो राजथान से बाहर निर्यात होता हैं।
    चित्तौड़गढ़, उदयपुर, अलवर, सिरोही, अजमेर, जोधपुर में सालर के पेड़ सर्वांधिक पाए जाते हैं, जिसका उपयेाग पैकिंग का समान बनाने में करते हैं। जैसे:- लकड़ी की पेटियां

राजस्थान में 13 वन मण्डल हैं:-
चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा, उदयपुर, सिरोही, अजमेर, कोटा, बांरा, टोंक, बूंदी, झालावाड़, जयपुर, भरतपुर, जोधपुर (सबसे बड़ा)।
सर्वांधिक घना वन मण्डल /सर्वांधिक वन वाला क्षेत्र:- उदयपुर

    सर्वांधिक घनी वनस्पति वाला जिला:- सिरोही (घना वन वाला जिला)

सन् 1992 में जापान की सहायता से अरावली वृक्षारोपण कार्यक्रम शुरू किया गया।
समाजिक वानिकी:-
लोगों के द्वारा सरकारी भवनों के आसपा, सड़क के किनारे, रेल लाईनों के किनारे, घरों के आसपास तथा सरकार द्वारा ग्राम पंचायतों को बंजर भूमि दी जाती हैं, जहां ग्रामीण जनता द्वारा वृक्षारोपण किया जाता हैं। इसे सामाजिक वानिकी कहते हैं।

    सन् 1992 में उदयपुर वन मण्डल द्वारा वनों की रक्षा के लिए अरावली देव वन संरक्षण अभियान चलाया गया।
    इसका उद्देष्य वनों का संरक्षण करना था।
    धोकड़ा के पेड़ राजस्थान के कुल पेड़ो का लगभग 60% हैं।
    रोहिड़ा के पेड़ सर्वांधिक जोधपुर में हैं।
    कुमटा के पेड़ सर्वांधिक जोधपुर में हैं, इसके फल की सब्जी बनती है।
    सर्वांधिक खेजड़ी नागौर में पायी जाती हैं। इसका वैज्ञानिक नाम प्रेसेपिस सिनेरिया हैं।


    रोहिड़ा का वैज्ञानिक नाम:- टिकोमेल अंडुलेटा है।
    चिंकारा का वैज्ञानिक नाम:- गजेला-गजेला है।
    गोड़वाना का वैज्ञानिक नाम:- क्रायोटिपस नाइग्रिसेप्स हैं।
    कीकर:- सर्वांधिक कीकर शेखावटी क्षेत्र में होते हैं।

गोड़वाना पक्षी:-

    ग्रेट इण्डियन बर्ड़ भी कहते हैं।
    गांव में इसे मालमोरड़ी कहते हैं।
    गोड़ावन पक्षी राष्ट्रीय मरू उद्यान जैसलमेर में सर्वांधिक हैं।
    इसके अलावा मोरसन (बांरा), सोखलिया (अजमेर) में गोड़ावन पक्षी के लिए सुरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया हैं।

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