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Thursday, May 17, 2018

राजस्थान की उद्योग

राजस्थान की उद्योग
उद्योग
राजस्थान उद्योगों की दृष्टि से अत्यधिक पिछड़ा हुआ हैं। कारण पानी की कमी, बिजली की कमी, सरकारी नीतियां।
वस्त्र उद्योग:-

    राजस्थान का सबसे पुराना उद्योग हैं तथा राजस्थान का कृषि पर आधारित सबसे बड़ा उद्योग हैं।
    सूती वस्त्र उद्योग की शुरूआत दामोदर दास द्वारा 1889 में ब्यावर में द कृष्णा मिल स्थापित करके की गई थी (19 वीं शताब्दी का अंतिम दषक)।

दूसरी मिल एड़वर्ड मिल – स्वदेषी आंदोलन के दौरान (1906 में) स्थापित की गई।
तीसरी मिल:- 1925 में महालक्ष्मी मिल स्थातिप की गई
यह तीनो मिले ब्यावर में स्थापित की गई।
भीलवाड़ा में मेवाड़ टेक्सटाइल मिल 1938 में स्थापित कि गई।
1942 में महाराजा उम्मेद मिल (पाली में) स्थापित की गई।
यह राजस्थान की सबसे बड़ी मिल हैं। (मजदूरों व उत्पादन की दृष्टि से)
वर्तमान में विवादित हैं (सर्वांधिक विवादित मिल)
कारण:- पानी की कमी

    वस्त्र उद्योग के कारण पाली राजस्थान का सर्वांधिक जल-प्रदूषित नगर हैं।
    1960 में भीलवाड़ा में स्पिनिंग एण्ड विविंग मिल की स्थापना की गई (कताई, बुनाई मिल की स्थापना)
    भीलवाड़ा को वस्त्र उद्योग के कारण राजस्थान का मेनचेस्टर कहते हैं।
    भीलवाड़ा में पाॅवर लूम के क्षेत्र में कम्प्यूटर एडेड डिजाइन सेंटर की स्थापना सन् 1993 की जा चुकी हैं।
    वर्तमान में 23 बड़ी वस्त्र मिलें हैं।
    सन् 1949 में इनकी संख्या 7 थी।
    अधिकांष मिलें निजी क्षेत्र की हैं, जिनकी संख्या 17 हैं।

तीन मिले सहकारी क्षेत्र की हैं जो निम्न हैं:-
सहकारी कताई, बुनाई मिल:-

    यह भीलवाड़ा में गुलाबपुरा में सन् 1966 में स्थापित की गई
    सभी कपास उत्पादन करने वाले बड़े किसान उस मिल के सदस्य हैं,
    इन्ही किसानों से ये पास खरीदती हैं।

सहकारी कताई बुनाई मिल:- गंगापुर (भीलवाड़ा में) सन् 1981 में स्थापित
की गई थी।
गंगानगर सहकारी कताई मिल:-

    यह सन् 1978 में हनुमानगढ़ में स्थापित की गई थी।
    इसके द्वारा किसानों से तथा सहकारी समितियों से कपास खरीदी जाती हैं।
    सन् 1993 में इन तीनों मिलों का एकीकरण कर राजस्थान स्पिनिंग विविंग फेडरेषन की स्थापना की गई।
    संघ का नाम:- स्पिनफेड (राज. स्पि. विवि. फेड.)
    उद्देष्य:- किसानों से कपास खरीदना व वस्त्र मिलों में कपास की आपूर्ति करना।
    वस्त्र उत्पादन में राजस्थान आत्मनिर्भर नहीं हैं, अधिकांष वस्त्र सूरत से आते हैं।

चीनी उद्योग:-
चीनी उत्पादन में राजस्थान का स्थान नहीं हैं। इसमें यह अत्यधिक पिछड़ा हुआ हैं।
कारण:-

    गन्ना नहीं (आद्र्र जलवायु)
    उष्ण कटिबंधीय जलवायु
    अत्यधिक गर्मी।

चीनी उद्योग तीनों क्षेत्रों में स्थापित की गई हैं।
निजी, सहकारी और सरकारी
द मेवाड़ शुगर मिल, भोपाल सागर (चित्तौड़गढ़) में 1932 में स्थापित की गई।
निजी क्षेत्र की पहली मिल निम्न हैं:-

    गंगानगर शुगर मिल सन् 1945 में स्थापित व सन् 1956 में सरकार के हाथ में आ गई। यह सार्वजनिक मिल हैं।
    सन् 1945 में बीकानेर औद्योगिक निगम लिमिटेड के द्वारा इसकी स्थापना की गई।
    यह एक मात्र मिल, जहां चुकन्दर से चीनी बनाई जाती हैं।
    गंगानगर शुगर मिल के द्वारा कोटा, उदयपुर में शराब बेची जाती हैं।
    चीनी की बची हुई खोई से गंगानगर, अजमेर, जोधपुर, अटक (बांरा) में देषी शराब बनती हैं।
    धौलपुर में हाइटेक ग्लास फैक्ट्री के द्वारा बोतले बनाई जाती हैं।
    इन सबका संचालन गंगानगर शुगर मिल करती हैं।
    केषवरायपाटन शुगर मिल सन् 1965) में बूंदी में स्थापित की गई।
    यह सहकारी चीनी मिल हैं, जो वर्तमान में बंद हैं।
    कम से कम 10 व्यक्ति मिलकर एक सहकारी समिति स्थापित कर सकते हैंे।
    सहकारी आंदोलन विष्व में सर्वप्रथम जर्मनी में शुरू हुआ।

सीमेण्ट उद्योग:-

    चित्तौड़, सिरोही, अजमेर, कोटा राज्य में उत्पादन होता हैं।
    सन् 2007 में राजस्थान सीमेण्ट उत्पादन में पहले स्थान पर था।
    सन् 2008 में दूसरे स्थान पर हैं। आंध्रप्रदेष पहले स्थान पर एवं मध्यप्रदेष दूसरे स्थान पर हैं।
    सीमेण्ट उद्योग के मुख्य कच्चे माल की दृष्टि से राजस्थान अत्यधिक सम्पन्न हैं।
    मुख्य कच्चा माल:- चूना पत्थर
    राजस्थान में चित्तौडगढ़ इस उद्योग के लिए सर्वाधिक अनुकूलित जिला हैं तथा सीमेण्ट उद्योग की सम्भावनाओं वाले जिले जैसलमेर, जालौर, झुन्झनु, नागौर, सीकर आदि हैं।
    सीमेण्ट का पहला कारखाना सन् 1915 में लाखेरी (बूंदी) में स्थापित किया गया।;।ब्ब्द्ध
    इसकें बाद चित्तौड़गढ़ में चेतक सीमेण्ट का कारखाना स्थापित किया गया।
    कोटा में मंगलम सीमेण्ट का कारखाना स्थापित किया गया।
    ब्यावर में श्री सीमेन्ट का कारखाना स्थापित हैं। (ब्यावर में शुष्क प्रोसेसिंग द्वारा सीमेंट का उत्पादन किया जाता हैं)
    इस इकाई को बांगड़ प्रतिष्ठान/इकाई कहते हैं। (श्री) जे.के.सीमेन्ट उदयपुर के डबोक में व चित्तौड़गढ़ के निम्बाहेड़ा व पीण्डवाड़ा (सिरोही में) स्थापित हैं।
    कोटा में श्रीराम सीमेन्ट, मंगलम् सीमेन्ट (मोड़क स्थान) स्थापित हैं।
    श्रीराम् की सभी इकाईयां कोटा में स्थापित हैं।
    सवांईमाधोपुर में जयपुर उद्योग लिमिटेड के द्वारा एषिया का सबसे बड़ा सीमेण्ट कारखाना स्थापित किया गया हैं।


सफेद सीमेण्ट:-

    नागौर के गोटन में जे.के.व्हाइट सीमेंट के नाम से स्थापित किया गया हैं।
    एषिया का पहला सफेद सीमेंट का कारखाना हैं जो सन् 1982 में स्थापित किया गया।
    खारिया खंगार (जोधपुर में) सफेद सीमेण्ट कारखाना निर्माणाधीन हैं। यह सफेद सीमेण्ट का सबसे बड़ा कारखाना हैं।

बिनानी सीमेण्ट:- पिनवाड़ा सिरोही में (पिण्डवाड़ा)
आदित्य सीमेण्ट:- चित्तौड़गढ़ में
नोट:- चित्तौड़गढ़ (निम्बाहेड़ा) का सर्वाधिक उत्पादन करने वाला कारखाना जे.के.सीमेण्ट हें।
श्रीराम सीमेण्ट कोटा सबसे कम उत्पादन करने वाली इकाई हैं।
सवांईमाधोपुर में बंद पड़ी इकाई को शीघ्र शुरू किया जा रहा हैं।
नमक उद्योग:-

    राजस्थान झीलों से नमक उत्पादन में पहले स्थान पर हैं।
    भारत में झील से नमक उत्पादन में सांभर का पहला स्थान हैं।यह भारत की सबसे बड़ी खारे पानी की झील हैं।
    सांभर जयपुर व नागौर के बीच में स्थित हैं जो फूलेरा तहसील में आता हैं।
    नमक उत्पादन का कार्य सांभर साॅल्ट लिमिटेड के द्वारा किया जाता हैं।
    यह इकाई हिन्दुस्तान साॅल्ट लिमिटेड की सहायक इकाई हैं।
    हिन्दुस्तान साॅल्ट लिमिटेड भारत सरकार का उपक्रम हैं।

सांभर से नमक उत्पादन का कार्य दो प्रकार से होता हैं:-
1. क्यारी के द्वारा नमक उत्पादन 2. वर्षां जल के द्वारा नमक उत्पादन
डीडवाना (नागौर में):-

    इस झील का नमक खाने योग्य नहीं हैं।
    इस झील से औद्योगिक नमक उत्पादन किया जाता हैं।

राजस्थान सरकार साॅल्ट वक्र्स द्वारा यहां पर दो इकाईयां स्थापित की गई हैं -
1. सोडियम सल्फेट 2. सोडियम सल्फाइट
यहां से उत्पादित नम का उपयोग तेजाब बनाने में, रंगरोगन में, कागज बनाने में, वस्त्र उद्योग में व विभिन्न प्रकार के रसायन बनाने में किया जाता हैं।
पंचपदरा/पंचमद्रा (बाड़मेर):-

    इस झील में नमक का घनत्व सर्वांधिक हैं।(.90%)
    यहां स्फीटिक (डली) नमक बनाया जाता हैं।
    नमक बनाने का काम खारवाल जाति के लोग करते हैं।
    स्फीटिक नमक बनाने के लिए एक झाड़ी का उपयोग किया जाता हैं।
    (मोरली की झाड़ी)
    नमक उत्पादन का कार्य निजी व सरारी दोनों स्तर पर होता हैं।

अन्य नमक उत्पादक झीलें:-

    पोकरण:- यह जैसलमेंर जिले में स्थित हैं। यहां पर सर्वोत्तम किस्म का नमक उत्पादित किया जाता हैं।
    कावोद की झील जैसलमेर में स्थापित हैं।
    बीकानेर में लूणकरनसर की झील जो अब लुप्त हो चुकी हैं।
    सीकर जिले में नीम का थाना मंे स्थित झील।
    नागौर जिलें में कुचामन सिटी में स्थित झील।


छोटे उद्योग
वनस्पति घी उद्योग:-

    भीलवाड़ा में वनस्पति घी बनाने का कारखाना सबसे पहला व सर्वांधिक हैं।
    इसके अलावा जयपुर, टोंक, चित्तौड़गढ़, उदयपुर, गंगानगर में भी कारखाने स्थापित हैं।
    जयपुर में महाराजा वनस्पति घी व आमेर ब्रांड घी बनाने का कारखाना स्थापित हैं।
    वनस्पति घी बनाने में हाइड्रोजन गेस काम में ली जाती हैं।
    ब्रेड बनाने में, केक बनाने में – ब्व्2 (फूलने वाली चीजें जैसे – रोटी)

ग्रेनाइट उद्योग:-

    यह जालौर, सिरोही, पाली व बाड़मेर में स्थापित हैं।

कीटनाषक दवाई उद्योग:-

    यह गंगानगर, जयपुर, कोटा व उदयपुर में स्थापित हैं।

गंधक से तेजाब:-

    यह अलवर, सीकर, खेतड़ी, चन्देरिया (चित्तौड़गढ़) में स्थापित हैं।

रुपये छापने वाली स्याही:-

    यह अलवर जिले के भिवाड़ी में उत्पादित की जाती है। वोटिंग स्याही का निर्माण भी यहीं किया जाता हैं।
    इसका निर्माण सिल्वर नाइट्रेट से किया जाता हैं।

इटालियन ज्वैलरी उद्योग:-

    अर्द्धबहुमूल्य पत्थरों से आभूषण बनाकर निर्यात किये जाते हैं व कच्चा माल बाहर से मंगाया जाता हैं।
    इटालियन ज्वैलरी उद्योग जयपुर का प्रसिद्ध हैं।

सिरेमिक उद्योग:-

    यह बीकानेर जिले के खारा में स्थापित हैं।
    जयपुर, आबूरोड़, कोटा, अजमेर आदि में भी इसका उत्पादन होता हैं।

विस्फोटक सामग्री उद्योग (बारूद):-

    धौलपुर में (राजस्थान सरकार द्वारा संचालित) स्थापित हैं। यह कई सालों से बंद था।

टी.वी.उद्योग:-

    यह कोटा में स्थापित हैं। यहा ट्यूब बनाने का कार्य किया जाता हैं।
    केबल इण्डस्ट्री भी कोटा में ही स्थापित हैं।
    मषीनरी उद्योग कोटा में स्थापित हैं। (हल्की मषीनरी उद्योग)

टायर, ट्यूब उद्योग:- कांकरोली, राजसमन्द, कोटा

    टी.वी.एण्टीना, डिस्क, बच्चों के झूले बनाने सम्बन्धित उद्योग फालना पाली में स्थापित हैं।
    छतरियों के निर्माण सम्बन्धित उद्योग फालना पाली में स्थापित हैं।
    J.K. सिन्थेटिस्क उद्योग कोटा में स्थापित हैं।
    श्रीराम रेयान उद्योग कोटा में स्थापित हैं।
    पानी, बिजली के मीटर का उत्पादन जयपुर एवं पाली में किया जाता हैं।
    बिजली के मीटर का उत्पादन केवल जयपुर में किया जाता हैं।
    अवन्ती स्कूटर, लेलेण्ड ट्रक का उत्पादन अलवर में किया जाता हैं।
    वैगन फैक्ट्री (बड़ी लाईन के डिब्बे) का उत्पादन कोटा में किया जाता हैं।
    रेल के डिब्बे का उत्पादन (सिमको वेगन फैक्ट्री) भरतपुर में किया जाता हैं।
    सल्फयूरिक एसिड प्लांट अलवर में स्थापित हैं।
    हाथ से कागज उत्पादन का कारखाना सांगेनर (जयपुर) व घोसुण्डा (उदयपुर) में स्थापित हैं।
    घोसुण्डा में वैष्णव र्ध में षिलालेख मिलें हैं। (बेसनगर, मोरी (मध्यप्रदेष में))
    बेसनगर का षिलालेख हेलियोडोरस ने लिखाया व भागवत धर्म स्वीकार किया (दूत बनकर शुंग शासक भागभद्र के दरबार में आया था)
    सांगानेर में राष्ट्रीय कागज संस्थान (हाथ कागज) स्थित हैं।

गुड़ और खाण्डसारी (षक्कर) उद्योग:-

    जयपुर, अलवर, भरतपुर, कोटा में इनका उत्पादन किया जाता हैं।

माचिस उद्योग:- अजमेर, टोंक, अलवर में इनका उत्पादन किया जाता हैं।
बीड़ी उद्योग:- यह टोंक में स्थापित हैं।

    माचिस की तिलियां अरडु के पेड़ से बनती हैं।

पीतल और तांबे के बर्तनः- जयपुर, जोधपुर, भरतपुर, पाली, किषनगढ़ में इनका उत्पादन होता हैं।

    एल्युमिनीयम के बर्तन का उत्पादन जोधपुर में होता हैं।
    एल्युमिनीयम का अयस्क बाॅक्साइट हैं।
    लकड़ी के प्लाई बोर्ड़ का उत्पादन कोटा, घोसुण्डा, उदयपुर, बांसवाड़ा में होता है।

चमड़ा उद्योग:- जोधपुर, जालौर, बीकानेर, नागौर
चमड़े की जूतियां:- जोधपुर में।

    नागरी जूतियों की एक किस्म हैं।
    सर्वांधिक प्रसिद्ध जूतियाँ (जालौर के भीनमाल की हैं)
    जोधपुर की व नागौर के बड़ु की प्रसिद्ध हैं। यहां (नागौर) जूती उद्योग को बढ़ावा दिया गया हैं।
    बांस के फर्नीचर जयपुर, अजमेर, जोधपुर में बनाए जाते हैं।

लाख उद्योग:- उदयपुर, चित्तौड़गढ़, बूंदी, झालावाड़, सवांईमाधोपुर, धौलपुर में स्थित हैं यहां लाख एकत्र करने का काम किया जाता हैं।
लाख के आभूषण:- जयपुर व उदयपुर में।
पी.वी.सी. (पाॅली विनाईल क्लोराइड):- कोटा, जयपुर
नाप-तौल के यंत्र:- कोटा में
उर्वरक उद्योग:- कोटा, उदयपुर
कृत्रिम रेषम:- कोटा, बांसवाड़ा, जयपुर, गुलाबपुरा (भीलवाड़ा में)
स्टेट वूलन मिल:- बीकानेर में, यहां पर ऊनी धागा बनाया जाता हैं। यह वर्तमान मंे बंद हैं।
स्टेट टेनरिज उद्योग:- टोंक में (लेदर उद्योग)

    डूंगरपुर में फ्लोस्पार, बेनिफिसिएषन संयंत्र स्थापित हैं। (मांड़ो की पाल में)
    सन्1978 में स्थापित राजकान का उद्देष्य लघु उद्यमियों को विपण, प्रबन्धकीय एवं तकनीकी मददन देना।
    राजस्थान जनजाति क्षेत्रीय विकास सहकारी संघ की स्थापना सन् 1976 में की गई।
    गैर परम्परागत ऊर्जा के स्त्रोतों के विकास हेतु 21 जनवरी, 1985 को RED  संस्था स्थापित की गई।

वित्तीय संस्थाएँ
रिकों (RICOO)

    रिकों की स्थापना सन् 1969 में हुई (राजस्थान राज्य उद्योग एवं खनिज विकास निगम की स्थापना की गई)।
    सन् 1979 में खनिज विकास निगम से अलग कर दिया गया।
    सन् 1980 में इसका नाम RICO रखा गया।

रिकों के निम्नलिखित कार्यं हैं:-

    उद्योगों के लिए प्रोजेक्ट तैयार करना।
    औद्योगिक क्षेत्रों का निर्धारण करना
    औद्योगिक बस्तियां स्थापित करना।
    तकनीकी मार्गदर्षन देना।
    अन्य औद्योगिकी इकाईयों के शेयर खरीदना।
    उद्योगों के लिए तकनीकी व प्रबन्ध की व्यवस्था करना।

राजस्थान वित्त निगम/राज्य वित्त निगम

    इसकी स्थापना सन् 1955 में की गई

उद्देष्य:-

    औद्योगिक इकाईयों को वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाना एवं ऋण देना।
    ये दीर्घकालीन ऋण देती हैं तथा अन्ये बैंको के द्वारा ऋण की गारण्टी देना।

राजस्थान लघु उद्योग निगम (RAJSICO):-

    इसकी स्थापना सन् 1961 में की गई।

उद्देष्य:-

    लघु उद्योगो तथा हस्तषिल्प इकाईयों की स्थापना करना।
    सभी षिल्पग्राम RAJSICO द्वारा स्थापित।
    पाल षिल्पग्राम जोधपुर, उदयपुर, माउण्ट आबू।

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