राजस्थान के इतिहास जानने के स्त्रोत
1. षिलालेख 2. गुहालेख 3. प्रषस्तियां
4. भग्नावेष 5. सिक्के 6. पत्र
7. ताम्रपत्र 8. खनन से प्राप्त 9. पुरातात्विकसामग्री
प्रमुख षिलालेख
बरली का षिलालेख (चित्तौड़):-
यह प्रथम षिलालेख हैं, जो बाहनीलिपी में लिखा गया हैं।
इस षिलालेख में अजमेर और चित्तौड़ में जैन धर्म का प्रसार बताया गया हैं।
सांमौली का षिलालेख (उदयपुर):-
संस्कृत भाषा में लिखित इस षिलालेख से मेवाड़ के गुहिल वंष की जानकारी प्राप्त होती हैं।
घटियाला का षिलालेख (जोधपुर):-
यह षिलालेख जोधपुर में स्थित हैं। जो प्रतिहार शासक की तत्कालीन जानारी देते हैं।
चित्तौड़ का षिलालेखः-
यह चित्तौड़ के राजा भोज और उनके उत्तराधिकारियों की जानकारी देता हैं।
बिजौलिया षिलालेख (भीलवाड़ा):-
यह सांभर और अजमेर के चैहान वंष की जानकारी देता हैं।
चिरवा का षिलालेख (उदयपुर):-
यह बप्पारावल के समय मेवाड़ की धार्मिंक स्थिति का वर्णन करते हैं।
महत्वपूर्ण प्रषस्तियां
रणकपुर (पाली):-
यहां जैन चैमुख मंदिर हैं। यह जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध हैं।
यहां 1444 खंभे हैं।
यह प्रषस्ति बप्पा रावल से लेकर महाराणा कुम्भा तक इतिहास बताती हैं।
किर्तिस्तम्भ प्रषस्ति (चित्तौड़):-
यह प्रषस्ति मेवाड़ के महाराणाओं की वंषावली बताती हैं।
साथ ही साथ 13 वीं शताब्दी में राजस्थान की धार्मिंक-सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति को भी बताती हैं।
राजप्रषस्ति (राजसमन्द):-
यहां से राजस्थान का सबसे बड़ा षिलालेख प्राप्त हुआ हैं।
यह षिलालेख राजसमंद झील के किनारे 25 काले पत्थरों की षिलाओं पर अंकित हैं।
यह संस्कृत भाषा में लिखा गया हैं।
इसे रणछोड़ भट्ट ने लिखा था।
जामा मस्जिद का लेख (भरतपुर):-
इस लेख से भरतपुर के शासक बलवंतसिंह की जानकारी मिलती हैं।
महत्वपूर्ण ताम्रपत्र
आहड़ताम्र पत्र:-
यह गुजरात के शासक भीमदेव द्वितीय से लेकर सोलंकी शासकों की जानकारी देता हैं।
खेरोदो ताम्रपत्र:-
यह ताम्रपत्र महाराणा कुंभा की गतिविधियों की जानकारी देता हैं।
महत्वपूर्ण सिक्कें
1.
अष्वेषाही
जैसलमेर
2.
शाहआलमी
मेवाड़
3.
गजशाही
बीकानेर
4.
तमचाषाही
धौलपुर
5.
सालिमषाही
बांसवाड़ा
6.
रामषाही
बूंदी
7.
विजयषाही
जोधपुर
8.
झाड़षाही
जयपुर
9.
रावशाही
अलवर
कलदार सिक्कें:- ये सिक्कें ब्रिटिषकाल में अंग्रेजों के द्वारा चलाए गए।
महत्वपूर्ण पुरालेख
खरीता:- एक राजा को दूसरे राजा द्वारा भेजे गए पत्र।
परवाना (प्रवाहन):- शासक द्वारा अपने अधीनस्थ को भेजे जाने वाले पत्र।
फरमान (रूक्के/निषान):- यह पत्र शासक द्वारा शाहीवर्ग के लोगों व विदेषी शासकों को लिखे जातें थे।
बहियां:- राजा के दैनिक कार्यों के संचालन का बोध होता हैं।
हकीकत री बही:- राजा की दैनिक दिनचर्या।
हुकूमत री बही:- राजा के शासकीय आदेषों की नकल की जाती थी।
खरीताबही:- राजा को प्राप्त होनेवाले महत्वपूर्ण पत्रों की नकल की जाती थी।
कमठाना बही:- राजकीय महलों व भवनों के निर्माण पर होने वाले खर्च का
लेखा-जोखा रखा जाता था।
ओहिया बही:- भ्रष्टाचाी कर्मचारियों की सूची।
मुल्क:- राज्य की आर्थिंक स्थिती।
जमाबंदी:- राजस्व सम्बन्धित जानकारी रखी जाती थी।
राजस्थान-जनपदकाल
राजस्थान के प्राचीन इतिहास को तीन भागों में बांटा जाता हैं। जिस समय भारत में सोलह जनपद थे, उस समय राजस्थान में तीन जनपदों का उदय हुआ:-
मत्स्य जनपद:- अलवर-जयपुर का क्षेत्र, इसकी राजधानी विराटनगर थी।
कुरू जनपद:- अलवर से लेकर दिल्ली तक का क्षेत्र आता था, इसकी राजधानी इन्द्रप्रस्थ थी।
शूरसेन:- धौलपुर, भरतपुर, करौली का क्षेत्र। इसकी राजधानी मयुरा थी।
इस युग के प्रमाण बैराठ में अषोक के आब्रु षिलालेख प्राप्त होते हैं।
कुषाण:-
राजस्थान के पूर्वी भाग पर कुषाणों का अधिकार था। राजस्थान के पूर्वी भाग में कुषाणों का अधिकार था। सुदर्षन झील (भरतपुर) के अभिलेख से कुषाणों की पुष्टि होती हैं।
गुप्तकाल:-
समुन्द्रगुप्त ने राजस्थान के दक्षिण भाग में अधिकार किया था। गुप्तकालीन शासकों के सिक्के बयाना (भरतपुर) से मिलते हैं।
हुणयुग:-
हुणषासक तोरमाण ने राजस्थान पर आक्रमण किया और इसे अपने राज्य में मिला लिया।
मिहिरकुल तोरमाण के पुत्र थे, जिन्होने कोटा में (बाड़ोली) षिवमंदिर का निर्माण करवाया।
यह मंदिर पंचायतन शैली से बना हैं।
वर्धन युग:-
सातवी शताब्दी में प्रभाकर वर्धन ने गुर्जरों से राजस्थान को छीना लेकिन इसी शताब्दी में इसकी मृत्यु हो गयी और गुर्जरों ने पुनः राजस्थान पर अधिकार कर लिया।
1. षिलालेख 2. गुहालेख 3. प्रषस्तियां
4. भग्नावेष 5. सिक्के 6. पत्र
7. ताम्रपत्र 8. खनन से प्राप्त 9. पुरातात्विकसामग्री
प्रमुख षिलालेख
बरली का षिलालेख (चित्तौड़):-
यह प्रथम षिलालेख हैं, जो बाहनीलिपी में लिखा गया हैं।
इस षिलालेख में अजमेर और चित्तौड़ में जैन धर्म का प्रसार बताया गया हैं।
सांमौली का षिलालेख (उदयपुर):-
संस्कृत भाषा में लिखित इस षिलालेख से मेवाड़ के गुहिल वंष की जानकारी प्राप्त होती हैं।
घटियाला का षिलालेख (जोधपुर):-
यह षिलालेख जोधपुर में स्थित हैं। जो प्रतिहार शासक की तत्कालीन जानारी देते हैं।
चित्तौड़ का षिलालेखः-
यह चित्तौड़ के राजा भोज और उनके उत्तराधिकारियों की जानकारी देता हैं।
बिजौलिया षिलालेख (भीलवाड़ा):-
यह सांभर और अजमेर के चैहान वंष की जानकारी देता हैं।
चिरवा का षिलालेख (उदयपुर):-
यह बप्पारावल के समय मेवाड़ की धार्मिंक स्थिति का वर्णन करते हैं।
महत्वपूर्ण प्रषस्तियां
रणकपुर (पाली):-
यहां जैन चैमुख मंदिर हैं। यह जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध हैं।
यहां 1444 खंभे हैं।
यह प्रषस्ति बप्पा रावल से लेकर महाराणा कुम्भा तक इतिहास बताती हैं।
किर्तिस्तम्भ प्रषस्ति (चित्तौड़):-
यह प्रषस्ति मेवाड़ के महाराणाओं की वंषावली बताती हैं।
साथ ही साथ 13 वीं शताब्दी में राजस्थान की धार्मिंक-सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति को भी बताती हैं।
राजप्रषस्ति (राजसमन्द):-
यहां से राजस्थान का सबसे बड़ा षिलालेख प्राप्त हुआ हैं।
यह षिलालेख राजसमंद झील के किनारे 25 काले पत्थरों की षिलाओं पर अंकित हैं।
यह संस्कृत भाषा में लिखा गया हैं।
इसे रणछोड़ भट्ट ने लिखा था।
जामा मस्जिद का लेख (भरतपुर):-
इस लेख से भरतपुर के शासक बलवंतसिंह की जानकारी मिलती हैं।
महत्वपूर्ण ताम्रपत्र
आहड़ताम्र पत्र:-
यह गुजरात के शासक भीमदेव द्वितीय से लेकर सोलंकी शासकों की जानकारी देता हैं।
खेरोदो ताम्रपत्र:-
यह ताम्रपत्र महाराणा कुंभा की गतिविधियों की जानकारी देता हैं।
महत्वपूर्ण सिक्कें
1.
अष्वेषाही
जैसलमेर
2.
शाहआलमी
मेवाड़
3.
गजशाही
बीकानेर
4.
तमचाषाही
धौलपुर
5.
सालिमषाही
बांसवाड़ा
6.
रामषाही
बूंदी
7.
विजयषाही
जोधपुर
8.
झाड़षाही
जयपुर
9.
रावशाही
अलवर
कलदार सिक्कें:- ये सिक्कें ब्रिटिषकाल में अंग्रेजों के द्वारा चलाए गए।
महत्वपूर्ण पुरालेख
खरीता:- एक राजा को दूसरे राजा द्वारा भेजे गए पत्र।
परवाना (प्रवाहन):- शासक द्वारा अपने अधीनस्थ को भेजे जाने वाले पत्र।
फरमान (रूक्के/निषान):- यह पत्र शासक द्वारा शाहीवर्ग के लोगों व विदेषी शासकों को लिखे जातें थे।
बहियां:- राजा के दैनिक कार्यों के संचालन का बोध होता हैं।
हकीकत री बही:- राजा की दैनिक दिनचर्या।
हुकूमत री बही:- राजा के शासकीय आदेषों की नकल की जाती थी।
खरीताबही:- राजा को प्राप्त होनेवाले महत्वपूर्ण पत्रों की नकल की जाती थी।
कमठाना बही:- राजकीय महलों व भवनों के निर्माण पर होने वाले खर्च का
लेखा-जोखा रखा जाता था।
ओहिया बही:- भ्रष्टाचाी कर्मचारियों की सूची।
मुल्क:- राज्य की आर्थिंक स्थिती।
जमाबंदी:- राजस्व सम्बन्धित जानकारी रखी जाती थी।
राजस्थान-जनपदकाल
राजस्थान के प्राचीन इतिहास को तीन भागों में बांटा जाता हैं। जिस समय भारत में सोलह जनपद थे, उस समय राजस्थान में तीन जनपदों का उदय हुआ:-
मत्स्य जनपद:- अलवर-जयपुर का क्षेत्र, इसकी राजधानी विराटनगर थी।
कुरू जनपद:- अलवर से लेकर दिल्ली तक का क्षेत्र आता था, इसकी राजधानी इन्द्रप्रस्थ थी।
शूरसेन:- धौलपुर, भरतपुर, करौली का क्षेत्र। इसकी राजधानी मयुरा थी।
इस युग के प्रमाण बैराठ में अषोक के आब्रु षिलालेख प्राप्त होते हैं।
कुषाण:-
राजस्थान के पूर्वी भाग पर कुषाणों का अधिकार था। राजस्थान के पूर्वी भाग में कुषाणों का अधिकार था। सुदर्षन झील (भरतपुर) के अभिलेख से कुषाणों की पुष्टि होती हैं।
गुप्तकाल:-
समुन्द्रगुप्त ने राजस्थान के दक्षिण भाग में अधिकार किया था। गुप्तकालीन शासकों के सिक्के बयाना (भरतपुर) से मिलते हैं।
हुणयुग:-
हुणषासक तोरमाण ने राजस्थान पर आक्रमण किया और इसे अपने राज्य में मिला लिया।
मिहिरकुल तोरमाण के पुत्र थे, जिन्होने कोटा में (बाड़ोली) षिवमंदिर का निर्माण करवाया।
यह मंदिर पंचायतन शैली से बना हैं।
वर्धन युग:-
सातवी शताब्दी में प्रभाकर वर्धन ने गुर्जरों से राजस्थान को छीना लेकिन इसी शताब्दी में इसकी मृत्यु हो गयी और गुर्जरों ने पुनः राजस्थान पर अधिकार कर लिया।
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