राजस्थान का भौगोलिक वर्गीकरण
1. मरूस्थल 2. मैदान 3. पर्वत 4. पठार
राजस्थान का प्राचीनतम भू-भाग या भौतिक प्रदेष दक्षिण का पठारी भाग हैं जो भारत के गांेडवाना लैंण्ड का भाग हैं।गोंड़वाना लैण्ड विष्व का सबसे प्राचीनतम पठार हैं।
मरूस्थल व भारत का महान मैदान टर्षरी (तृतीय) काल में टेथिस सागर का हिस्सा था, जो पर्यावरण, जलवायु में परिवर्तन के परिणामस्वरूप मरूस्थल मे बदल गया।
यदि हिमालय नहीं होता तो महान मैदान भी नहीं होता।
पश्चिम/थार का मरूस्थल:-
जो अरावली के पष्चिम में फैला हुआ हैं। राजस्थान का सबसे बड़ा भौगोलिक प्रदेष जो 1,75,000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ हैं। जो राजस्थान के कुल भू-भाग का 60% , 61% हैं।
जिसमें राजस्थान की 40% जनसंख्या निवास करती हैं।
मरूस्थल राजस्थान का सर्वाधिक जनसंख्या वाला भौतिक प्रदेष हैं। (राजस्थान के सबसे बड़ा भू-भाग)
सन् 1981 से 2001 तक सर्वाधिक जनसंख्या वृद्धि दर वाले जिले क्रमष:-
बीकानेर (1981-91) जैसलमेर (1997-2001)
राजस्थान सरकार के अनुसार मरूस्थल में 12 जिले हैं।
योजना आयोग व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार मरूस्थल में 11 जिलें हैं। इसमें हनुमानगढ़ शामिल नहीं हैं।
12 जिलें:- गंगानगर , बीकानेर , जैसलमेर , बाड़मेर , जालौर , चुरू , झुन्झनु , सीकर (षेखावटी) , जोधपुर , पाली , नागौर , हनुमानगढ़।
थार में बालूका स्तूपों का विस्तार 58% तक हैं।
मरूस्थल की विषेषताएँ:-
मरूस्थल का उत्तर में विस्तार पंजाब, हरियाणा से लेकर दक्षिण में कच्छ तक हैंे।
पूर्व में अरावली पर्वत, पष्चिम में पाकिस्तान तक फैला हुआ हैं।
बरखान:- भौतिक आकृति हैं, जो मरूस्थल में चलने वाली हवाओं के कारण
निर्मित अर्द्धचंद्राकार स्तूप होता हैं जो स्थानांतरित होते हैं।
ऐसे टीले जोधपुर, सीमावर्ती बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर में सर्वाधिक हैं।
इसको मार्च आॅफ रेगिस्तान भी कहते हैं।
इनका मार्च पूर्व की ओर (अरावली की ओर) हैं।
प्लाया:- ये रेतीले मरूस्थल में हवाओं से निर्मित प्राकृतिक झील होती हैं,जो प्लाया कहलती हैं। (नाड़ी) जैसलमेर।
खड़ीन:- रेगिस्तान में मानव निर्मित झील होती हैं, वर्षां के दिनों में इनमें पानी इकट्ठा होता हैं व किसान इसके चारों और खेती करते हैं, ऐसी कृषि को खड़ीन कृषि कहते हैं।
सेम:- जलप्लावित क्षेत्र होता हैं, ऐसे क्षेत्र का निर्माण अतयधिक सिंचाई के कारण तथा नहर के आसपास होता हैं। सेम क्षेत्र कृषि के लिए अनु-उपयोगी होता हैं। (बाड़मेर-कवास, मलवा)
इसके परिणामस्वरूप पर्यावरण असंतुलन, मिट्टी का अपरदन की समस्या उत्पन्न हो गई हैंे।
जोहड़:- शेखवटी क्षेत्र में चूना बाहुल्य वाले भागों में कम गहरे तलाबांे का निर्माण होता हैं, जिन्हे स्थानीय भाषा में जोहड़ या जोड़ा कहते हैं।
वेरा:- मारवाड़ क्षेत्र में (जालौर, जोधुपर, पाली) कुएँ को वेरा कहते हैं।
बावड़ी:- ये मानव निर्मित होती हैं जिसमें पानी निकालने के लिए सीढ़ियाँ होती हैं।
बीड़:- शेखावटी, अजमेर, बीकानेर में घास के मैदानों को बीड़ कहते हैं। उदाहरण:- जोड़बीड़, जोहड़बीड़
गोडवाड़:- लूनी नदी व अरावली के मध्य स्थित भू-भाग गोडवाड़ कहलाता हैं।
बांगड़ क्षेत्र:- अरावली के पष्चिम में शेखावटी प्रदेष से लेकर लूनी नदी के बेसिन तक फैला भौतिक प्रदेष। यह नदी और रेत से निर्मित भू-भाग हैं जो कभी कृषि के लिए उपयोगी था।
डोयला/डोई:- लकड़ी के चम्मच को डोलया कहते हैं। शेखावटी क्षेत्र में चाटु कहते हैं। कैर की लकड़ी से बनता हैं।
मरूस्थलीय वनस्पति:-
- मरूस्थलीय वनस्पति को जेरोफाइट कहते हैं।
- ऐसी वनस्पति कठोर छाल वाली होती हैं। जिसकी जड़ें गहरी, पत्तियाँ कांटों के रूप में पाई जाती हैं।
- मरूस्थलीय वनस्पति कठोर होती हैं, क्योंकि मरूस्थलीय जलवायु उष्ण कटिबंधीय हैं।
- ग्लोब पर कर्क व मकर रेखा के बीच का क्षेत्रफल उष्णकटिबंण्धीय होता हैं, जहां सूर्य की किरणें वर्षं के अधिकांष समय तक सीधी पड़ती हैं।
(23)0 कर्क – 23)0 मकर)
खेजड़ी:- उपनाम:-जांटी, शमी, थार का कल्पवृक्ष, थार की तुलसी।
- खेजड़ी की पूजा कृष्ण जनमाष्टमी व दषहरे पर होती हैं।
- दशहरे पर इसकी पूजा राजपूतों द्वारा की जाती हैं।
- इस अवसर पर अस्त्र-ष़स्त्रों की पूजा भी होती हैं।
- खेजड़ी का मेला जोधपुर के पास खेजड़ली गांव में भाद्रपद शुक्ल पक्ष की नवमी को भरता हैं।
- कृष्ण पक्ष:- शुक्ल (सुदी) पक्ष
- सन् 1730 में खेजड़ी को बचाते हुए 363 स्त्री, पुरूष, बच्चे शहीद हो गए।
- चिपको आंदोलन की विचारधारा यहीं से उत्पन्न हुई।
- वर्तमान में चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा (उत्तरांचल के) हैं।
- सांगरी:- खेजड़ी का फल हैं। ;।चतपस दृ डंलद्ध
- मार्च में बगर यानि फूल लगते हैं, अप्रैल में सांगरी बनती हैं। (लूम)
रोहिड़ा:-
- राजस्थान का राज्य पुष्प हैं।
- रोहिड़े को राजस्थान का सागवान भी कहते हैं।
- राजस्थान के दक्षिण-पष्चिमी भाग (बाड़मेर, जोधपुर, जालौर) में रोहिड़ा सर्वाधिक पाया जाता हैं।
- रोहिडे़ का पुष्प केसरिया हिरमिच (गाढ़ा लाल) होता हैं।
- गर्मी के बढ़ने के साथ रोहिड़ा फलता-फूलता हैं।
- अप्रैल-मई में यह पूर्ण रूप से खिल जाता हैं।
कैर:-
- मरूस्थलीय झाड़ी, जिसके फल का उपयोग सब्जी, आचार बनाने में किया जाता हैं।
- कैर पकने पर ढ़ालू बनता हैं। (लाल रंग का)
कुमटा:-
- जोधपुर, बाड़मेर में कुमटा के पेड़ सर्वांधिक पाए जाते हैं।
- इसके बीज को कुमटिया कहते हैं। जो सब्जी व आचार बनाने में काम आते हैं।
- कुमटा के कांटे टेढ़े होते हैं।
जाल:-
- मरूस्थलीय पेड़ जो पाली, जोधपुर, जालौर क्षेत्र में सर्वांधिक पाए जाते हैंे।
- इसका फल ग्रामीण क्षेत्र में पाया जाता हैं, जिसे पीलू कहते हैं।
- कैक्ट्स, थोर, नागफनी:- ये कांटेदार होते हैं।
गूंदी/गूंदे:-
- पाली, जालौर, जोधपुर, सिरोह में सर्वाधिक पाए जाते हैं। इसका उपयोग आचार बनाने में किया जाता हैं।
- खेजड़ी सर्वाधिक नागौर में पाई जाती हैं।
- कीकर सर्वाधिक शेखावटी क्षेत्र में पाया जाता हैंे।
मरूस्थलीय जलवायु:- मरूस्थल में दो प्रकार की जलवायु पाई जाती हैं:-
उष्ण कटिबंधीय शुष्क जलवायु प्रदेष:-
इसके अंतर्गत सीमान्त जिले आते हैं। जैसे:- गंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर, पष्चिमी जोधपुर आदि।
शुष्क जलवायु:- जहां वर्षां की मात्रा औसत 10-15 सेमी. हैं। जहां गर्मी में धूल भरी आंधिया चलती हैं।
उष्ण कटिबंधीय अर्द्धशुष्क जलवायु वाला प्रदेष:-
इसके अंतर्गत अरावली के एकदम पष्चिम में स्थित जिले जैसे:- झुन्झनु, सीकर, चुरू, पाली, नागौर, जलौर, पूर्वी जोधपुर, कुछ हिस्सा सिरोही का अर्द्धषुष्क में आते हैं। जहां वर्षां की मात्रा 40 सेमी. के आसपास होती हैं।
मध्यवर्ती पर्वतीय प्रदेष (अरावली):-
- अरावली राजस्थान के मध्य मे स्थित हैं, जिसका विस्तार उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पष्चिम में 692 कि.मी. तक स्थित हैं।
- उत्तर-पूर्व में इसका विस्तार दिल्ली में रायसीना की पहाड़ियों तक हैं।
- दक्षिण-पष्चिम में गुजरात के पालनपुर जिलें में खेड़ब्रह्यम तक हैं।
- राजस्थान की भौगोलिक सीमाओं के भीतर इसकी कुल लम्बाई 550 कि.मी. हैं।
अरावली का जिलेवार विस्तार:-
उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पष्चिम की ओर क्रमषः-
- अलवर, झुन्झनु (खेतड़ी), जयपुर, सीकर (नीम का थाना), अजमेर, पाली, भीलवाड़ा, राजसमंद, उदयपुर, सिरोही, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, डुंगरपुर, बांसवाड़ा (14)
- अरावली को मेरू भी कहते हैं।
- अरावली विष्व का प्राचीनतम पर्वत व भौतिक प्रदेष हैं, जिसकी चट्टाने वलयदार हैं।
- खनिजों की मात्रा और संख्या की दृष्टि से धनी हैं। कुछ खनिज ऐसे हैं, जो सर्वाधिक अरावली में पाये जाते हैं। जैसें:-सीसा-जस्ता, चांदी आदि।
- अरावली के दक्षिण में सर्वांधिक खनिज पाए जाते हैं, जैसे-जैसे अरावली के उत्तर-पूर्व में जाते हैं। खनिजों की संख्या व मात्रा में कमी आती हैं।
- अरावली का दक्षिण-पष्चिम भाग सर्वांधिक चैड़ा हैं।
- अजमेर में इसकी चैड़ाई सबसे कम हैं।
- उदयपुर से अजेर तक श्रंृखलाबद्ध हैं, अजमेर के बाद अरावली कटी-छटी हैं।
- अरावली राजस्थान के लिए जल-विभाजन का काम करती है। (वर्षां जल का)
- अरावली भारत के महान जल विभाजक का अंग हैं।
- अरावली के पष्चिम में लूनी नदी बहती हैं व पूर्व में बनास नदी बहती हैं।
- अजमेर अरावली के न् घाटी (यू) में स्थित हैं। (अजमेर अरावली के मध्य में स्थित जिला)।
- प्लेटनुमा भू-भाग में स्थित नगर उदयपुर हैं।
- दक्षिण-पष्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर अरावली की ऊँचाई में कमी आती हैं।
गुरू षिखर:-
- माऊन्ट आबू में स्थित मध्य भारत की सबसे ऊँची चोटी, जिसकी ऊँचाई 1727 मी. हैं।
- कर्नल जेम्स टाड ने गुरू षिखर को संतो का षिखर कहा।
- कर्नल टाड ने अपने एजेन्ट के कार्यकाल में राजस्थान से प्राप्त अनुभवों को लंदन जाकर ‘एनल्स एण्ड एन्टीक्यूटीज आॅफ राजस्थान’ में संकलित किया
हैं।दूसरा भाग ‘ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इण्डिया’ हैं।
- 1822 तक टाड राजस्थान के सबसे लोकप्रिय पाॅलिटिकल ऐजेन्ट थे। ये पष्चिमी राजपूताना प्रान्त के पाॅलिटिकल एजेन्ट रहे थे।
सेर:-
- सिरोही में स्थित, इसकी ऊँचाई 1597 मीटर हैं।
- यह दूसरी सबसे ऊँची चोटी हैं।
जरंगा:- उदयपुर में स्थित तीसरी चोटी, इसकी लम्बाई 1442 मीटर हैं।
उत्तर-पूर्वी व पूर्वी मैदानी भाग:-
- ये मैदान राजस्थान के उत्तर-पूर्व में अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवांईमाधोपुर, दौसा, जयपुर, चम्बल बेसिन और बनास बेसिन में स्थित हैं।
- यह मैदान भारत के महान मैदान का विस्तार हैं।
- महान मैदान उत्तर भारत में गंगा-यमुना का मैदान कहलाता हैं।
- प्रत्यक्ष रूप से गंगा-जमुना के मैदान में अलवर, भरतपुर स्थित हैं।
- एकल रूप में अलवर स्थित हैं।
- समूह रूप में अलवर, भरतपर व धौलपुर स्थित हैं।
विषेषताएँ:-
- ये मैदान राजस्थान का सर्वाधिक उपजाऊ भाग हैं जो कृषि, उद्योग, खेती, व्यापार-वाणिज्य, यातायात की दृष्टि से विकसित हैं।
- इस मैदान का निर्माण जलोढ़ मिट्टी से हुआ हैं। इस मिट्टी को कांप, दोमट व कच्छारी मिट्टी भी कहते हैं।
- जलोढ़ मिट्टी विष्व की सर्वाधिक उपजाऊ मिट्टी हैं।
- इस मिट्टी में सभी प्रकार की फसलें होती हैं।
- इस प्रदेष का जनसंख्या घनत्व सर्वाधिक हैं, जो लगभग 300 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हैं।
- इस मैदान मे 39% जनसंख्या निवास करती हैं।
- मरूस्थल का जनसंख्या घनत्व 50 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से कम हैं।
- इस मैदान में बहने वाली नदियाँ बनास और चम्बल हैं।
- मैदान की पूर्वी सीमा विंध्यन कगार से बनती हैं व पष्चिमी सीमा अरावली से बनती हैं।
- अरावली क्षेत्र मंे 11% जनसंख्या निवास करती हैं, जबकि 9% पठारी भाग स्थित हैंे।
दक्षिण का पठारी भाग:-
- राजस्थान में दक्षिण और दक्षिणी-पूर्वी भाग भारत के गोड़वाना लेण्ड का हिस्सा हैं, जो विष्व का प्राचीनतम पठारी क्षेत्र हैं।
- इस प्रकार राजस्थान का पठारी भाग राजस्थान का प्राचीनतम भौतिक प्रदेष हैं।
- मध्यप्रदेष के मालवा का पष्चिमी विस्तार हैं।
- ये पूर्ण परिपक्व पठार हैंे।
हाड़ौती का पठार:-
- राजस्थान के दक्षिण-पूर्व में कोटा, बूंदी, झालावाड़, बांरा को हाड़ौती क्षेत्र कहते हैं, क्योंकि यहां पर हाड़ा वंषी चैहानों का शासन था।
- यह मालवा का पष्चिमी विस्तार हैं।
- काली मिट्टी से निर्मित हैं, मालवा का पठार (मध्यप्रदेष) भी काली मिट्टी से निर्मित हैं।
- इस प्रदेष को सोया प्रदेष कहते हैं।
- काली मिट्टी जलोढ़ के बाद सर्वांधिक उपजाऊ मिट्टी हैं।
- हाड़ौती के पष्चिम में चम्बल नदी बहती हैं।
- इस प्रदेष में पार्वती, कालीसिन्ध, आहु, परवान, निवाज नदियाँ कहती हैं, जो प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से चम्बल नदी में दांयी ओर से मिलती हैं।
- इस प्रदेष में हरियाली अधिक होने पर भी गर्मी अधिक पड़ती हैं, क्योंकि काली मिट्टी की अधिकत हैं।
- गागरोन का किला हाड़ौति का सर्वाधिक प्रसिद्ध किला हैं, जो एक जलदुर्ग हैं, जो कालीसिंध व आहु के संगम पर स्थित हैं।
- हाड़ौती का सबसे प्राचीन जिला बूंदी हैं।
- हाड़ा वंष की प्राचीनतम राजधानी बूंदी हैं।
- गागरोन के किले में पृथ्वीराज राठौड़ ने वेलि क्रिसन रूकमणसीरी नामक पुस्तक लिखी, जिसे दुरसा आढ़ा ने पांचवा वेद कहा।
मुकन्दवाड़ा का पठार:-
- कोटा, बूंदी, झालावाड़ के मध्य स्थित पठारी भाग, जहां दुर्रा नामक अभ्यारण्य (कोटा) में स्थापित किया जा रहा हैं।
- जिसे तीसरा राष्ट्रीय अभयारण्य का दर्जा देने की प्रक्रिया चल रहीं हैं।
ऊपरमाल की पहाड़ियाँ:-
- राजस्थान के दक्षिण-पूर्व के मध्य भाग में स्थित पठारी भाग जिसका सर्वांधिक विस्तार भीलवाड़ा में हैं।
- ऊपरमाल का क्षेत्र बिजौलिया (भीलवाड़ा) किसान आंदोलन, बेंगू (चित्तौड़गढ़) आंदोलन के लिए प्रसिद्ध था।
भोराट का पठार:- उदयपुर के गोगुन्दा और राजसमन्द के कुम्भलगढ़ के मध्य में स्थित पठार हैं।
मगरा/भाकर/डूंगर:- पहाड़ी क्षेत्र जो पाली की पूर्वी सीमा, राजसमन्द, उदयपुर, सिरोही, अजमेर के दक्षिण में स्थित हैं।
बांगड़ क्षेत्र:- डंूगरपुर, बांसवाड़ा को बांगड़ क्षेत्र कहते हैं। (वाग्वर) (व्याघ्रवाट)
मेवल:- डंूगरपुर व बांसवाड़ा के बीच का क्षेत्र मेवल कहलाता हैं।
भाकर:-
- तीव्र ढ़ाल वाली ऊबड़-खाबड़ कम ऊँची पहाड़ियों को सिरोही, जालौर, पाली में भाकर कहते हैं।
- पाली में मानपुरा कस्बा मानपुरी भाकरी कहलाता हैं।
छप्पन का मैदान:-
चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, डंूगरपुर, बांसवाड़ा व उदयपुर का मध्यवर्ती भाग/मैदानी भाग छप्पन का मैदान कहलाता हैं। यह आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र हैं।
गिर्वा/गिरवा:-
गिर्वा जहां उदयपुर स्थित हैं, उसके चारों ओर स्थित पहाडियाँ व समतल मैदान से निर्मित भौतिक आकृति गिरवा कहलाती हैं।
खेरवाड़/खेराड़:- भीलवाड़ा में स्थित हैं। यह बनास नदी का बेसिन हैं।
मेरवाड़ा की पहाडियाँ:-
- यहा मेर नामक जाति के लोग रहते थे। इसका विस्तार अजमेर के दक्षिण में, पाली, राजसमंद, भीलवाड़ा के मध्य में हैं।
- ब्रिटिष सरकार ने क्रांति के समय मेर बटालियन का गठन किया था, जिसने नसीराबाद छावनी की सुरक्षा की।
मेवात:- अलवर व भरतपुर को मेवात कहते हैं।
डूंगरपुर-बांसवाड़ा से कर्क रेखा गुरजती हैं, जो डूंगरपुर के दक्षिण किनारे को छूते हुए बांसवाड़ा के लगभग मध्य से होकर गुजरती हैं।
अरबूद:- इसमें दक्षिणी-पूर्वी सिरोही व आबू पर्वत खण्ड मुख्यतः सम्मिलित हैं।
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