राजस्थान में जनजातीय आंदोलन
जनजातीय आंदोलन
भगत आंदोलन/गोविन्दगिरी आंदोलन (1883):-
भील, आदिवासी संन्यासियों को भगत कहा जाता था।
यह आंदोलन आदिवासी भील बाहुल्य डुंगरपुर और बांसवाड़ा में हुआ था।
गोविन्दगिरी के द्वारा भीलों में व्याप्त बुराईयों, कुप्रथाओं को दूर करने के लिए एवं भीलों में राजनैतिक चेतना जागृत करने के लिए 1883 में संप (भाईचारा या सम्पत) सभा की स्थापना की एवं धूणी की स्थापना की जहां गोविन्दगिरी ने भीलों को उपदेष दियें।
गोविन्दगिरी दयानन्द सरस्वती की विचारधारा से प्रेरित थे। इन्होने बांसवाड़ा की मानगढ़ की पहाड़ी को अपनी कर्मभूमि बनाया।
7 दिसम्बर, 1908 को हजारों की संख्या में भील इस पहाड़ी पर इकटठे हुए। पुलिस के द्वारा इन पर गोलियां चलाई गई, जिसमंे लगभग 1500 भील मारे गए।
प्रतिवर्ष इस स्थान पर अष्विन शुक्ल पूर्णिमा को मेला भरता हैं।
ब्रिटिष सरकार और रियासत के द्वारा इस आंदोलन को दबा दिया गया।
एकी आंदोलन/भोमट भील आंदोलन (1921-23):-
इस आंदोलन का सुत्रपात मोतीलाल तेजावत ने किया था। इन्हे आदिवासियों का मसीहा कहा जाता हैं।
मोतीलाल तेजावत का जन्म उदयपुर के कोलियार गांव में एक ओसवाल परिवार में हुआ था। इस आंदोलन का प्रमुख कारण भीलों में व्याप्त असंतोष था। असंतोष के कारण निम्न थें:-
भीलों में व्याप्त सामाजिक बुराईयां व उनकी प्रथाओं पर ब्रिटिष सरकार ने रोक लगा दी थी।
तम्बाकू, अफीम और नमक पर करलगाए गए। यदि भील कर नहीं चुकाता तो उसे खेती नहीं करने दी जाती थी।
भीलों से लाभ और बेगार लेने के लिए क्रुरतापूर्वक व्यवहार किया जाता था।
मोतीलाल तेजावत ने सभी भीलों को एकत्रित कर इस आंदोलन का श्रीगणेष 1921 में झाड़ोल और फालसिया से किया था।
1922 में तेजावत ने नीमड़ा गांव में भीलों का एक सम्मेलन बुलाया। जिसकी घेराबंदी ब्रिटिष सरार ने की व अंधाधुंध गेालियां चलाई। निमड़ाकाण्ड को दूसरा जिलयांवाला काण्ड कहते हैं।
तेजावत भूमिगत हो गए। 1929 में मोतीलाल तेजावत ने महात्मा गंाधी की प्रेरणा से पुनः भीलों के लिए कार्य किये और ‘‘वनवासी संघ’’ नामक संस्था की सन् 1936 में स्थापना की।
इस संघ के मुख्य सदस्य मोतीलाल पाण्ड्य (बांगड़ का गांधी), माणिक्यलाल वर्मा और मोतीलाल तेजावत थे।
मीणा आंदोलन (1930)
यह जयपुर रियासत में हुआ।
इसका कारण 1924 में ब्रिटिष सरकार ने क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट बनाया तथा 1930 में जयपुर राज्य में जरायम पेषा कानून बनाया जिसमें मीणाओं को अपराधी जाति घोषित कर दिया और इन्हें दैनिक रूप से निकटतम थाने में उपस्थिति दर्ज करवाना अनिवार्य कर दिया।
मीणाओं ने इसका विरोध किया और संघर्षं के लिए 1933 मीणा क्षत्रिय महासभा का गठन , मीणा जाति सुधार कमिटी का गठन किया और 1944 में मुनि मगर सागर की अध्यक्षता में नीमका थाना में एक सम्मेलन बुलाया और 1946 में स्त्रियों और बच्चों को इस कानून से मुक्त कर दिया।
28 अक्टूबर, 1946 को बागावास में मीणाओं ने सम्मेलन बुलाया और चैकीदारी के काम से इस्तीफा दे दिया।
आजादी के बाद 1952 में जरायम पेषा कानून पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया गया।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गठित संस्थाए/संघ/संगठन
सभ्य सभा की स्थापना:-
इसकी स्थापना गुरू गोविन्द गिरी ने आदिवासी हितों की सुरक्षा के लिए की थी।
राजस्थान सेवा संघ (1919):-
इस संस्था को 1920 में अजमेर स्थानांतरितकरदिया गया।
राजस्थान सेवा संघ में प्रमुख भूमिका अर्जुनलाल सेठी, विजयसिंह पथिक, केसरीसिंह बारहठ एवं रामनारायण चैधरीने निभाई थी।
राजपुताना मध्य भारत सभा (1919):-
इसकी स्थापना आमेर में जमनालाल बजाज ने की थी। इसमें मुख्य भूमिका अर्जुनलाल सेठी एवं विजयसिंह पथिक ने निभाई थी।
वीर भारत समाज (1910):-
इसकी स्थापना विजयसिंह पथिक ने की थी।
वीर भारत सभा (1910):-
इसकी स्थापना केसरीसिंह बारहठ़ एवं गोपालदास खरवा ने की थी।
जैन वर्द्धमान विद्यालय (1907):-
इसकी स्थापना अर्जुनलाल सेठी ने जयपुर में की थी।
वागड़ सेवा मंदिर एवं हरिजन सेवा समिति (1935):-
इसकी स्थापना भोगीलाल पाण्ड्या ने की थी।
मारवाड़ सेवा संघ (1920):-
इसकी स्थापना चांदमल सुराणा ने की थी।
मारवाड़ सेवा संघ को सन् 1924 में जयनारायण व्यास ने पुनः जीवित किया और एक नई संस्था की स्थापना की जिसे ‘‘मारवाड़ हितकारणी सभा’’ के नाम से जाना गया।
मारवाड़ हितकारणी सभा की स्थापना 1929 में हुई।
अखिल भारतीय देषी राज्य लोक परिषद (1927):-
इसकी स्थापना में मुख्य भूमिका जवाहरलाल नेहरू ने निभाई थी।
इसका प्रथम अधिवेषन मुम्बई में हुआ था। जिसकी अध्यक्षता रामचन्द्र राव ने की थी।
इसका उद्देष्य देषी रियासतों में शान्तिपूर्वंक तरीके से उत्तरदायी शासन की स्थापना करना था।
चरखा संघ (1927):-
इसकी स्थापना जमनालाल बजाज ने जयपुर में की थी।
सस्ता साहित्य मण्डल (1925):-
इसकी स्थापना हरिभाऊ उपाध्याय ने अजमेर के हुडी में की थी।
जीवन कुटीर (1927):-
इसकी स्थापना हीरालाल शास्त्री द्वारा जयपुर में की गई थी। वर्तमान में यह निवाई (टोंक) में हैं।
वनस्थली विद्यापीठ (1938):-
इसकी स्थापना हीरालाल शास्त्री द्वारा रतनलाल शास्त्री के साथ मिलकर की गई थी। जीवन कुटीर योजना को ही बाद में वनस्थली विद्यापीठ कहा गया था।
सर्वहितकारिणी सभा (1907):-
इसके संस्थापक कन्हैयालाल ढुढँ थें। सन् 1914 में गोपालदास (बीकानेर) ने इसे पुर्नजिवित किया था।
विद्या प्रचारिणी सभा (1914):-
इसकी स्थापना विजयसिंह पथिक ने की थी।
नागरी प्रचारणी सभा (1934):-
इसकी स्थापना ज्वालाप्रसाद ने धौलपुर में की थी।
नरेन्द्र मण्डल (1921):-
देषी राज्यों के राजाओं द्वारा निर्मित मण्डल जिसके चांसलर बीकानरे के महाराजा गंगासिंह थे।
सेवासंघ (1938):-
इसकी स्थापना भागीलाल पाण्ड्या ने डुंगरपुर में की थी।
स्वतन्त्रता आंदोलन के दौरान प्रकाषित होने वाले पत्र-पत्रिकाएँ व समाचार पत्र
राजस्थान केसरी (1920):-
यह एक साप्ताहिक पत्रिका थी, जिसकी शुरूआत विजयसिंह पथिक ने वर्धा में की थी।
इसके संपादक रामनारायण चैधरी थे। इस पत्रिका के लिए वित्तीय सहायता जमनालाल बजाज ने दी थी।
नवीन राजस्थान (1921):-
यह समाचार पत्र अजमेर से प्रकाषित होता था। इसकी शुरूआत विजयसिंह पथित ने की थी।
यही समाचार पत्र आगे चलकर तरूण राजस्थान समाचार-पत्र के नाम से जाना गया।
बिजौलिया किसान आंदोलन के समय पथिक ने नवीन राजस्थान और राजस्थान केसरी समाचारपत्रों का प्रयोग आंदोलन प्रचार के लिए किया था।
नवज्योति (1936):-
यह अजमेर से प्रकाषित होने वाला साप्ताहिक पत्र था। इसकी स्थापना रामनारायण चैधरी ने की थी।
इसकी बागड़ोर दुर्गाप्रसाद चैधरी ने संभाली थी।
राजस्थान समाचार (1889)ः-
यह अजमेर से प्रकाषित होता था। इसके संस्थापक मुंषी समर्थानन थें।
यह प्रथम हिन्दी दैनिक समाचार पत्र था।
आगी बाण (1932):-
यह ब्यावर से प्रकाषित होता था। इसके संस्थापक जयनारायण व्यास थें।
राजपूताना गजट:-
यह अजमेर से प्रकाषित होता था। इसके संस्थापक मौलवी मुराद अली थे।
अखण्ड भारत:-
यह मुम्बई से प्राषित होता था। इसे संस्थाप जयनारायण व्यास थंे।
सज्जन कीर्ति सुधाकर:-
यह मेवाड़ से प्रकाषित होता था।
राजस्थान टाइम्स:-
यह जयपुर से अंग्रेजी में प्रकाषित समाचार-पत्र था।
प्रताप:-
यह कानपुर से प्रकाषित होता था। इसके संस्थापक पथिकजी और गणेष शंकर विद्यार्थी थे।
देरा हितैषी:-
यह समाचार पत्र अजमेर से प्रकाषित होता था।
लोकवाणी:-
यह जयपुर से प्रकाषित होता था। इसके संस्थापक पंडित देवीषंकर थे।
यह पत्र जमनालाल बजाज की स्मृति में प्रकाषित किया गया था।
जनजातीय आंदोलन
भगत आंदोलन/गोविन्दगिरी आंदोलन (1883):-
भील, आदिवासी संन्यासियों को भगत कहा जाता था।
यह आंदोलन आदिवासी भील बाहुल्य डुंगरपुर और बांसवाड़ा में हुआ था।
गोविन्दगिरी के द्वारा भीलों में व्याप्त बुराईयों, कुप्रथाओं को दूर करने के लिए एवं भीलों में राजनैतिक चेतना जागृत करने के लिए 1883 में संप (भाईचारा या सम्पत) सभा की स्थापना की एवं धूणी की स्थापना की जहां गोविन्दगिरी ने भीलों को उपदेष दियें।
गोविन्दगिरी दयानन्द सरस्वती की विचारधारा से प्रेरित थे। इन्होने बांसवाड़ा की मानगढ़ की पहाड़ी को अपनी कर्मभूमि बनाया।
7 दिसम्बर, 1908 को हजारों की संख्या में भील इस पहाड़ी पर इकटठे हुए। पुलिस के द्वारा इन पर गोलियां चलाई गई, जिसमंे लगभग 1500 भील मारे गए।
प्रतिवर्ष इस स्थान पर अष्विन शुक्ल पूर्णिमा को मेला भरता हैं।
ब्रिटिष सरकार और रियासत के द्वारा इस आंदोलन को दबा दिया गया।
एकी आंदोलन/भोमट भील आंदोलन (1921-23):-
इस आंदोलन का सुत्रपात मोतीलाल तेजावत ने किया था। इन्हे आदिवासियों का मसीहा कहा जाता हैं।
मोतीलाल तेजावत का जन्म उदयपुर के कोलियार गांव में एक ओसवाल परिवार में हुआ था। इस आंदोलन का प्रमुख कारण भीलों में व्याप्त असंतोष था। असंतोष के कारण निम्न थें:-
भीलों में व्याप्त सामाजिक बुराईयां व उनकी प्रथाओं पर ब्रिटिष सरकार ने रोक लगा दी थी।
तम्बाकू, अफीम और नमक पर करलगाए गए। यदि भील कर नहीं चुकाता तो उसे खेती नहीं करने दी जाती थी।
भीलों से लाभ और बेगार लेने के लिए क्रुरतापूर्वक व्यवहार किया जाता था।
मोतीलाल तेजावत ने सभी भीलों को एकत्रित कर इस आंदोलन का श्रीगणेष 1921 में झाड़ोल और फालसिया से किया था।
1922 में तेजावत ने नीमड़ा गांव में भीलों का एक सम्मेलन बुलाया। जिसकी घेराबंदी ब्रिटिष सरार ने की व अंधाधुंध गेालियां चलाई। निमड़ाकाण्ड को दूसरा जिलयांवाला काण्ड कहते हैं।
तेजावत भूमिगत हो गए। 1929 में मोतीलाल तेजावत ने महात्मा गंाधी की प्रेरणा से पुनः भीलों के लिए कार्य किये और ‘‘वनवासी संघ’’ नामक संस्था की सन् 1936 में स्थापना की।
इस संघ के मुख्य सदस्य मोतीलाल पाण्ड्य (बांगड़ का गांधी), माणिक्यलाल वर्मा और मोतीलाल तेजावत थे।
मीणा आंदोलन (1930)
यह जयपुर रियासत में हुआ।
इसका कारण 1924 में ब्रिटिष सरकार ने क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट बनाया तथा 1930 में जयपुर राज्य में जरायम पेषा कानून बनाया जिसमें मीणाओं को अपराधी जाति घोषित कर दिया और इन्हें दैनिक रूप से निकटतम थाने में उपस्थिति दर्ज करवाना अनिवार्य कर दिया।
मीणाओं ने इसका विरोध किया और संघर्षं के लिए 1933 मीणा क्षत्रिय महासभा का गठन , मीणा जाति सुधार कमिटी का गठन किया और 1944 में मुनि मगर सागर की अध्यक्षता में नीमका थाना में एक सम्मेलन बुलाया और 1946 में स्त्रियों और बच्चों को इस कानून से मुक्त कर दिया।
28 अक्टूबर, 1946 को बागावास में मीणाओं ने सम्मेलन बुलाया और चैकीदारी के काम से इस्तीफा दे दिया।
आजादी के बाद 1952 में जरायम पेषा कानून पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया गया।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गठित संस्थाए/संघ/संगठन
सभ्य सभा की स्थापना:-
इसकी स्थापना गुरू गोविन्द गिरी ने आदिवासी हितों की सुरक्षा के लिए की थी।
राजस्थान सेवा संघ (1919):-
इस संस्था को 1920 में अजमेर स्थानांतरितकरदिया गया।
राजस्थान सेवा संघ में प्रमुख भूमिका अर्जुनलाल सेठी, विजयसिंह पथिक, केसरीसिंह बारहठ एवं रामनारायण चैधरीने निभाई थी।
राजपुताना मध्य भारत सभा (1919):-
इसकी स्थापना आमेर में जमनालाल बजाज ने की थी। इसमें मुख्य भूमिका अर्जुनलाल सेठी एवं विजयसिंह पथिक ने निभाई थी।
वीर भारत समाज (1910):-
इसकी स्थापना विजयसिंह पथिक ने की थी।
वीर भारत सभा (1910):-
इसकी स्थापना केसरीसिंह बारहठ़ एवं गोपालदास खरवा ने की थी।
जैन वर्द्धमान विद्यालय (1907):-
इसकी स्थापना अर्जुनलाल सेठी ने जयपुर में की थी।
वागड़ सेवा मंदिर एवं हरिजन सेवा समिति (1935):-
इसकी स्थापना भोगीलाल पाण्ड्या ने की थी।
मारवाड़ सेवा संघ (1920):-
इसकी स्थापना चांदमल सुराणा ने की थी।
मारवाड़ सेवा संघ को सन् 1924 में जयनारायण व्यास ने पुनः जीवित किया और एक नई संस्था की स्थापना की जिसे ‘‘मारवाड़ हितकारणी सभा’’ के नाम से जाना गया।
मारवाड़ हितकारणी सभा की स्थापना 1929 में हुई।
अखिल भारतीय देषी राज्य लोक परिषद (1927):-
इसकी स्थापना में मुख्य भूमिका जवाहरलाल नेहरू ने निभाई थी।
इसका प्रथम अधिवेषन मुम्बई में हुआ था। जिसकी अध्यक्षता रामचन्द्र राव ने की थी।
इसका उद्देष्य देषी रियासतों में शान्तिपूर्वंक तरीके से उत्तरदायी शासन की स्थापना करना था।
चरखा संघ (1927):-
इसकी स्थापना जमनालाल बजाज ने जयपुर में की थी।
सस्ता साहित्य मण्डल (1925):-
इसकी स्थापना हरिभाऊ उपाध्याय ने अजमेर के हुडी में की थी।
जीवन कुटीर (1927):-
इसकी स्थापना हीरालाल शास्त्री द्वारा जयपुर में की गई थी। वर्तमान में यह निवाई (टोंक) में हैं।
वनस्थली विद्यापीठ (1938):-
इसकी स्थापना हीरालाल शास्त्री द्वारा रतनलाल शास्त्री के साथ मिलकर की गई थी। जीवन कुटीर योजना को ही बाद में वनस्थली विद्यापीठ कहा गया था।
सर्वहितकारिणी सभा (1907):-
इसके संस्थापक कन्हैयालाल ढुढँ थें। सन् 1914 में गोपालदास (बीकानेर) ने इसे पुर्नजिवित किया था।
विद्या प्रचारिणी सभा (1914):-
इसकी स्थापना विजयसिंह पथिक ने की थी।
नागरी प्रचारणी सभा (1934):-
इसकी स्थापना ज्वालाप्रसाद ने धौलपुर में की थी।
नरेन्द्र मण्डल (1921):-
देषी राज्यों के राजाओं द्वारा निर्मित मण्डल जिसके चांसलर बीकानरे के महाराजा गंगासिंह थे।
सेवासंघ (1938):-
इसकी स्थापना भागीलाल पाण्ड्या ने डुंगरपुर में की थी।
स्वतन्त्रता आंदोलन के दौरान प्रकाषित होने वाले पत्र-पत्रिकाएँ व समाचार पत्र
राजस्थान केसरी (1920):-
यह एक साप्ताहिक पत्रिका थी, जिसकी शुरूआत विजयसिंह पथिक ने वर्धा में की थी।
इसके संपादक रामनारायण चैधरी थे। इस पत्रिका के लिए वित्तीय सहायता जमनालाल बजाज ने दी थी।
नवीन राजस्थान (1921):-
यह समाचार पत्र अजमेर से प्रकाषित होता था। इसकी शुरूआत विजयसिंह पथित ने की थी।
यही समाचार पत्र आगे चलकर तरूण राजस्थान समाचार-पत्र के नाम से जाना गया।
बिजौलिया किसान आंदोलन के समय पथिक ने नवीन राजस्थान और राजस्थान केसरी समाचारपत्रों का प्रयोग आंदोलन प्रचार के लिए किया था।
नवज्योति (1936):-
यह अजमेर से प्रकाषित होने वाला साप्ताहिक पत्र था। इसकी स्थापना रामनारायण चैधरी ने की थी।
इसकी बागड़ोर दुर्गाप्रसाद चैधरी ने संभाली थी।
राजस्थान समाचार (1889)ः-
यह अजमेर से प्रकाषित होता था। इसके संस्थापक मुंषी समर्थानन थें।
यह प्रथम हिन्दी दैनिक समाचार पत्र था।
आगी बाण (1932):-
यह ब्यावर से प्रकाषित होता था। इसके संस्थापक जयनारायण व्यास थें।
राजपूताना गजट:-
यह अजमेर से प्रकाषित होता था। इसके संस्थापक मौलवी मुराद अली थे।
अखण्ड भारत:-
यह मुम्बई से प्राषित होता था। इसे संस्थाप जयनारायण व्यास थंे।
सज्जन कीर्ति सुधाकर:-
यह मेवाड़ से प्रकाषित होता था।
राजस्थान टाइम्स:-
यह जयपुर से अंग्रेजी में प्रकाषित समाचार-पत्र था।
प्रताप:-
यह कानपुर से प्रकाषित होता था। इसके संस्थापक पथिकजी और गणेष शंकर विद्यार्थी थे।
देरा हितैषी:-
यह समाचार पत्र अजमेर से प्रकाषित होता था।
लोकवाणी:-
यह जयपुर से प्रकाषित होता था। इसके संस्थापक पंडित देवीषंकर थे।
यह पत्र जमनालाल बजाज की स्मृति में प्रकाषित किया गया था।
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